Muzaffarnagar शहर में रविवार को अचानक राजनीतिक और सामाजिक हलचल तब तेज हो गई जब भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के कार्यकर्ताओं ने शहर कोतवाली में जबरदस्त प्रदर्शन और धरना शुरू कर दिया। इस घटनाक्रम ने न केवल पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी उजागर किया कि किस प्रकार से आज भी आम जन की बात सुनने की जगह उन पर पुलिसिया रौब दिखाया जाता है।

दिव्यांग की गुहार बनी चिंगारी

पूरा मामला उस समय गरमा गया जब भाकियू के नगराध्यक्ष गुलबहार राव अपने कुछ साथियों के साथ कोतवाली पहुंचे। उनके साथ दाल मंडी निवासी एक दिव्यांग व्यक्ति भी था, जिसकी किसी निजी समस्या पर पुलिस से न्याय की अपेक्षा थी। गुलबहार राव ने पुलिस अधिकारियों से आग्रह किया कि दिव्यांग की शिकायत पर त्वरित कार्यवाही की जाए, लेकिन उनका दावा है कि पुलिस ने न केवल बात को नजरअंदाज किया, बल्कि उनके और पीड़ित के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया।

इस कथित दुर्व्यवहार से आहत होकर गुलबहार राव ने तुरंत भाकियू के उच्च नेतृत्व को स्थिति से अवगत कराया। कुछ ही समय में बड़ी संख्या में यूनियन के कार्यकर्ता कोतवाली परिसर में इकट्ठा हो गए और जोरदार नारेबाजी शुरू हो गई।

कोतवाली परिसर बना संघर्ष का मैदान

कोतवाली के अंदर जैसे ही कार्यकर्ताओं की भीड़ बढ़ी, वैसे ही माहौल तनावपूर्ण हो गया। पुलिस की घेराबंदी और यूनियन कार्यकर्ताओं के उग्र तेवरों ने पूरे इलाके को अफरा-तफरी में डाल दिया। कार्यकर्ताओं ने “पुलिस प्रशासन होश में आओ”, “पीड़ितों को न्याय दो”, “दमन नहीं सहेंगे” जैसे नारे लगाए।

इस बीच सूचना मिलते ही सीओ सिटी राजू कुमार साव मौके पर पहुंचे। उन्होंने भाकियू नेताओं से बातचीत की, मामला समझा और तत्काल हल का आश्वासन दिया। लेकिन कार्यकर्ता अपनी मांगों पर अड़े रहे और धरना दोपहर बाद तक जारी रहा।

भाकियू ने चेताया, नहीं मानी गई बात तो होगा बड़ा आंदोलन

धरने के दौरान भाकियू कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि इस प्रकार का पुलिसिया रवैया बंद नहीं हुआ और दोषी कर्मियों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो वह जनपद स्तर से लेकर लखनऊ तक आंदोलन को तेज करेंगे। गुलबहार राव ने कहा कि “हम अपने अधिकारों के लिए लड़ना जानते हैं। पुलिस अगर न्याय नहीं दे सकती तो कम से कम अपमान भी न करे।”

कार्यकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि जिले भर के थानों में आए दिन पीड़ितों के साथ ऐसा ही बर्ताव किया जाता है। उन्होंने कहा, “थाने आम जनता की सुरक्षा के लिए होते हैं, ना कि उनके सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए।”

स्थानीय व्यापारियों और नागरिकों में चिंता

इस विरोध प्रदर्शन के चलते कोतवाली के आसपास के बाजारों और दाल मंडी क्षेत्र में भय और चिंता का माहौल रहा। कई दुकानदारों ने अपनी दुकानें अस्थायी रूप से बंद कर दीं। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यदि जल्द समाधान नहीं निकला तो कानून व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

भविष्य में और बढ़ सकता है आंदोलन का दायरा

सूत्रों की मानें तो भाकियू इस मामले को केवल स्थानीय मुद्दा नहीं मान रही है। संगठन इसे किसान और आम जन के सम्मान से जुड़ा मुद्दा मान रहा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में भाकियू अन्य जिलों में भी इसी मुद्दे को लेकर प्रदर्शन और महापंचायतों का आयोजन कर सकती है।

इसके अलावा, पार्टी नेतृत्व की ओर से भी चेतावनी दी गई है कि अगर प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही नहीं हुई, तो यह आंदोलन राज्यव्यापी हो सकता है।

पुलिस की सफाई

जब पुलिस अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने अभद्रता के आरोपों को नकारते हुए कहा कि कोतवाली में मौजूद स्टाफ ने सिर्फ शांति बनाए रखने का प्रयास किया। पुलिस का कहना है कि “कोई भी आमजन यदि शिकायत लेकर आता है, तो उसकी सुनवाई की जाती है। लेकिन यदि कोई दबाव डालकर कार्य करवाना चाहता है तो वह कानून के दायरे से बाहर है।”

राजनीतिक माहौल भी गरमाया

इस मुद्दे ने स्थानीय राजनीति में भी हलचल मचा दी है। कुछ विपक्षी नेताओं ने पुलिस की कार्यशैली को लेकर निशाना साधा है और कहा है कि राज्य में लोकतंत्र की हत्या हो रही है, जहां किसानों, दिव्यांगों और आम जन की आवाज दबाई जा रही है।

वहीं, कुछ सत्ताधारी दलों के नेताओं ने भाकियू के रवैये को अनुशासनहीन करार देते हुए कहा कि प्रशासनिक काम में अड़चन डालना कानून व्यवस्था के खिलाफ है। इस बयान से दोनों पक्षों में और अधिक तल्खी आने की आशंका जताई जा रही है।

अब आगे क्या…?

मुजफ्फरनगर में भाकियू का यह विरोध प्रदर्शन केवल एक प्रशासनिक घटना नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है कि अब आम जन और किसान संगठनों का धैर्य जवाब देने लगा है। पुलिस और प्रशासन के रवैये को लेकर जो असंतोष है, वह धीरे-धीरे अब सड़क पर उतर रहा है।

अब देखना होगा कि प्रशासन इस मुद्दे पर कैसे कार्य करता है — क्या दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी अन्य विवादों की तरह धीरे-धीरे ठंडा पड़ जाएगा?

फिलहाल, मुजफ्फरनगर की कोतवाली में जो हुआ, उसने जनता और पुलिस के बीच भरोसे की दीवार में एक और दरार डाल दी है — और यह दरार कब भर पाएगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।



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