Muzaffarnagar पुलिस और एसओजी की संयुक्त कार्रवाई ने शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया है। थाना खतौली पुलिस और एसओजी टीम ने संयुक्त रूप से ऐसे संगठित अपराधी गिरोह का पर्दाफाश किया है, जो एनसीईआरटी की फर्जी किताबें छापकर विभिन्न राज्यों में बेच रहे थे। इस कार्रवाई में आठ अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है और उनके पास से करीब 1.33 लाख फर्जी किताबें, तीन गाड़ियां और एक अवैध प्रिंटिंग नेटवर्क का भंडाफोड़ किया गया है। जब्त की गई किताबों की अनुमानित कीमत लगभग तीन करोड़ रुपये आंकी गई है।
खुफिया सूचना से मिली सफलता, बिछाया गया था जाल
1 जून 2025 को पुलिस को एक गुप्त सूचना मिली थी कि मेरठ से कुछ संदिग्ध व्यक्ति खतौली, मुजफ्फरनगर की ओर फर्जी किताबों की खेप लेकर आ रहे हैं। सूचना मिलते ही पुलिस ने तुरंत हरकत में आते हुए अलकनंदा नहर क्षेत्र के पास सघन चेकिंग अभियान शुरू कर दिया।
थोड़ी ही देर में मेरठ की ओर से दो संदिग्ध गाड़ियां आती दिखाई दीं। जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने भागने की कोशिश की। पुलिस और एसओजी की टीम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए सभी आरोपियों को पकड़ लिया।
गिरफ्तार आरोपियों की पहचान और आपराधिक भूमिका
गिरफ्तार अभियुक्तों की पहचान निम्न रूप में हुई है:
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आदिल मेवाती, निवासी श्यामनगर, थाना लिसाड़ी गेट
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अनिल चौहान, निवासी सुंदर नगर डिफेंस एंक्लेव, थाना कंकरखेड़ा
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राहुल राणा, निवासी माधवपुरम, थाना ब्रहमपुरी
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राजू शर्मा, निवासी मोहकमपुर
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ताराचंद, निवासी मोहकमपुर, दिल्ली रोड
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सतेन्द्र सिंघल, निवासी नौचंदी ग्राउंड
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जावेद, निवासी गोला कुआं, थाना कोतवाली नगर मेरठ
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अमित सैनी, निवासी इन्द्रानगर, थाना ब्रहमपुरी, मेरठ
प्रारंभिक पूछताछ में सभी आरोपियों ने जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वे एक संगठित गिरोह का हिस्सा हैं जो एनसीईआरटी की फर्जी किताबें छापकर देशभर में बेचते हैं और सरकार को भारी राजस्व का नुकसान पहुंचाते हैं।
हरियाणा से होता था फर्जी किताबों का उत्पादन, यूपी से होती थी सप्लाई
पूछताछ में सामने आया कि यह गिरोह हरियाणा के समालखा और पानीपत में एक अवैध प्रिंटिंग प्रेस चला रहा था। वहां फर्जी किताबें छापी जाती थीं और फिर उन्हें खतौली के ग्राम भैंसी स्थित एक गुप्त गोदाम में रखा जाता था। यहां से ये किताबें दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड, बिहार और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सप्लाई की जाती थीं।
राजू शर्मा, ताराचंद, सतेन्द्र और जावेद कच्चे माल की खरीदारी और छपाई का काम संभालते थे, जबकि आदिल मेवाती, अनिल चौहान, राहुल राणा और अमित सैनी इन किताबों की सप्लाई और डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क चलाते थे।
जांच एजेंसियों की सतर्कता से बच नहीं पाया बड़ा अपराध, जब्त हुई प्रिंटिंग यूनिट
जैसे ही गिरोह की जानकारी पुलिस को मिली, मुजफ्फरनगर पुलिस ने पानीपत पुलिस से संपर्क कर अवैध प्रिंटिंग प्रेस को भी जब्त कर लिया। इस प्रेस में एनसीईआरटी की कक्षा 6 से 12 तक की फर्जी किताबें छापी जा रही थीं। बरामद किताबों की गुणवत्ता देखकर भी सामान्य व्यक्ति के लिए असली और नकली की पहचान करना मुश्किल था।
क्या है कानूनी प्रावधान, और क्या हो सकती है सजा?
एनसीईआरटी किताबों को कॉपीराइट अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित किया गया है। ऐसे में इनकी फर्जी छपाई और बिक्री न केवल कॉपीराइट उल्लंघन, बल्कि राजस्व हानि, शैक्षणिक धोखाधड़ी और साजिशन अपराध की श्रेणियों में आता है। यदि आरोप साबित होते हैं, तो आरोपियों को 10 साल तक की सजा और भारी जुर्माना हो सकता है।
शिक्षा व्यवस्था के साथ खिलवाड़, अब तक कितनी पहुंच चुकी थीं किताबें?
प्रशासन की मानें तो इस गिरोह की जड़ें कई अन्य राज्यों में फैली हुई हैं। प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक साल में यह गिरोह करीब 50 लाख से अधिक फर्जी किताबें बेच चुका है। इन पुस्तकों की वजह से छात्र न केवल गलत जानकारी पढ़ रहे थे, बल्कि इससे देश की शिक्षा प्रणाली की साख को भी गहरा आघात पहुंच रहा था।
पुलिस की कार्यवाही पर एसएसपी संजय वर्मा का बड़ा बयान
एसएसपी संजय वर्मा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह कार्रवाई अपराध और अपराधियों के खिलाफ पुलिस की सख्त नीति का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि गिरोह का नेटवर्क और भी बड़ा हो सकता है और पुलिस इसकी गहन जांच कर रही है। इस प्रकरण में एनसीईआरटी की टीम भी सक्रिय रूप से शामिल रही।
पुलिस टीम की सराहनीय भूमिका
गिरफ्तारी और छापेमारी में जिन पुलिस अधिकारियों और जवानों ने अहम भूमिका निभाई, उनके नाम हैं:
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प्र0नि0 बृजेश कुमार शर्मा
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उ0नि0 नंदकिशोर शर्मा
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उ0नि0 अक्षय कुमार
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उ0नि0 सूर्य प्रताप सिंह
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उ0नि0 अजय प्रसाद गौड़
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का. अखिल चौधरी, मोहित चौधरी, संजय सोलंकी
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हैड कांस्टेबल जितेंद्र त्यागी, जोगेंद्र सिंह, ब्रह्मप्रकाश
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एसओजी टीम के सचिन अत्री, तरुण पाल, विक्रांत चौधरी, कपिल तेवतिया, पिंटू, रवि राणा, अनुज कुमार, विकास कुमार
समाज के लिए गंभीर चेतावनी, और क्या हो सकते हैं इसके दुष्परिणाम?
फर्जी किताबों के ऐसे कारोबार से न केवल सरकार को करोड़ों का नुकसान होता है, बल्कि बच्चों के भविष्य पर भी सीधा असर पड़ता है। इन किताबों की सामग्री न तो मान्यता प्राप्त होती है, न ही प्रमाणिक। ऐसे में छात्रों को गलत जानकारी मिलती है और परीक्षा परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
Muzaffarnagar में हुआ यह फर्जी किताबों का भंडाफोड़ यह साबित करता है कि शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में भी संगठित अपराधी गिरोह सक्रिय हैं। ऐसे में पुलिस और जांच एजेंसियों को पूरी तत्परता से कार्रवाई करते रहना होगा ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और शिक्षा की गुणवत्ता एवं साख बनी रहे।