Muzaffarnagar में ऐतिहासिक क्षण उस समय साकार हुआ जब नगर पालिका परिषद परिसर में भगवान परशुराम की भव्य प्रतिमा स्थापना का निर्णय सार्वजनिक रूप से सामने आया। इस समाचार ने पूरे क्षेत्र में उत्साह की लहर फैला दी है, विशेषकर ब्राह्मण समाज में। वर्षों से प्रतीक्षित यह मांग अब जाकर मूर्त रूप लेने जा रही है, जिससे समाज में उत्साह और आत्मगौरव का वातावरण पैदा हो गया है।
नेताओं और समाजसेवियों का ऐतिहासिक मिलन
गांधीनगर स्थित आवास पर उत्तर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल, नगर पालिका परिषद की अध्यक्षा मीनाक्षी स्वरूप और भाजपा नेता गौरव स्वरूप से ब्राह्मण समाज के वरिष्ठजनों की भेंट हुई। इस दौरान समाज ने इस ऐतिहासिक निर्णय पर आभार जताया और इसे एक ‘सांस्कृतिक पुनर्जागरण’ की संज्ञा दी। प्रतिनिधिमंडल में विष्णु शर्मा, प्रदीप शर्मा, उमादत्त शर्मा, जैसे दर्जनों प्रतिष्ठित समाजसेवी शामिल थे।
भगवान परशुराम: शक्ति, शौर्य और संस्कृति के प्रतीक
राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल और मीनाक्षी स्वरूप ने कहा कि भगवान परशुराम केवल भगवान विष्णु के छठे अवतार नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के जीवंत प्रतीक हैं। उनका व्यक्तित्व वीरता, धर्म, तप और मर्यादा से ओतप्रोत है। नगर में स्थापित होने वाली यह प्रतिमा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगी।
चौराहे से मूर्ति स्थापना तक: संघर्ष और संवाद की यात्रा
प्रारंभ में समाज ने नगर के एक प्रमुख चौराहे का नाम भगवान परशुराम के नाम पर रखने का प्रस्ताव रखा था। किंतु कपिल देव अग्रवाल के सुझाव पर यह तय हुआ कि नगर पालिका प्रांगण में उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित की जाए। यह निर्णय न केवल अधिक उपयुक्त समझा गया, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
मूर्ति नहीं, सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बनेगा यह स्थान
मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि यह केवल प्रतिमा स्थापना तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह स्थल एक ‘सांस्कृतिक चेतना केंद्र’ के रूप में विकसित किया जाएगा। इसका उद्देश्य युवाओं को ऋषि-मुनियों की परंपरा, ग्रंथों और सनातन धर्म के मूल्यों से जोड़ना होगा। यह केंद्र सामाजिक एकता, आत्मसम्मान और राष्ट्रभक्ति की नई पहचान बनेगा।
सभासद राजीव शर्मा की भूमिका बनी निर्णायक
इस प्रस्ताव को नगर पालिका परिषद में पास कराने में सभासद राजीव शर्मा की भूमिका भी अहम रही। उन्होंने इस विचार को परिषद के समक्ष रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। इससे यह सिद्ध होता है कि राजनीति और समाज सेवा मिलकर जब सकारात्मक दिशा में कार्य करें, तो बड़े बदलाव संभव हैं।
ब्राह्मण समाज के लिए गर्व और सम्मान का क्षण
इस निर्णय को ब्राह्मण समाज की वर्षों पुरानी मांग की पूर्ति के रूप में देखा जा रहा है। समाज के प्रतिनिधियों ने कहा कि यह फैसला केवल एक मूर्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज की सांस्कृतिक पहचान, गौरव और आत्मसम्मान की विजय है।
सैकड़ों लोग बने गवाह, उत्साह से गूंजा नगर
इस भव्य कार्यक्रम और चर्चा में सैकड़ों की संख्या में समाजसेवी, युवा, गणमान्य नागरिक मौजूद रहे। जिनमें अक्षय शर्मा, राकेश शर्मा, देवेश शर्मा, हरेंद्र शर्मा, अमित शास्त्री, हिमांशु कौशिक, रविकांत शर्मा, मनोज कुमार, प्रमोद शर्मा, हरीश त्यागी और अरुण शर्मा सहित अनेक प्रमुख नाम शामिल हैं। सभी ने एकमत होकर इस ऐतिहासिक पहल का स्वागत किया और इसे आगे बढ़ाने की बात कही।
समाज को मिला नई दिशा में बढ़ने का अवसर
यह निर्णय ब्राह्मण समाज के साथ-साथ संपूर्ण नगर के लिए नई दिशा और ऊर्जा का संचार करने वाला है। समाज के युवाओं को अपनी संस्कृति, मूल्यों और परंपराओं से जोड़ने का जो प्रयास किया गया है, वह आने वाले समय में समाज के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा।
नगर के सांस्कृतिक परिदृश्य में ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत
यह पहल न केवल नगर के सांस्कृतिक परिदृश्य में ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत है, बल्कि यह पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक नई परंपरा की नींव रखने जैसा है। आज जब युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित हो रही है, ऐसे समय में भगवान परशुराम जैसे आदर्श व्यक्तित्व की प्रतिमा उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने का माध्यम बनेगी।
अन्य जिलों में भी उठ रही है मांग
मुजफ्फरनगर में हुई इस पहल के बाद अन्य जिलों से भी ऐसी खबरें सामने आ रही हैं, जहां ब्राह्मण समाज अपने सांस्कृतिक नायकों की स्मृति में स्मारक या चेतना केंद्र की मांग कर रहा है। इससे प्रतीत होता है कि यह केवल एक नगर तक सीमित नहीं, बल्कि एक राज्यव्यापी सांस्कृतिक आंदोलन का रूप ले सकता है।
भविष्य की योजनाओं पर भी हुई चर्चा
समाज के प्रतिनिधियों ने मंत्री कपिल देव अग्रवाल के साथ भविष्य में प्रस्तावित सांस्कृतिक गतिविधियों, जैसे कि सनातन शिविर, ग्रंथ अध्ययन केंद्र, संस्कृत पाठशालाएं आदि पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि ऐसे केंद्र हर तहसील स्तर पर बनने चाहिए ताकि सांस्कृतिक जड़ें गहराई तक पहुंच सकें।
भगवान परशुराम की प्रतिमा स्थापना से जुड़े इस ऐतिहासिक निर्णय ने न केवल मुजफ्फरनगर में उत्साह और गर्व का वातावरण तैयार किया, बल्कि यह एक ऐसे सांस्कृतिक नवजागरण का प्रतीक बन गया है जिसकी गूंज आने वाले वर्षों तक समाज में सुनाई देगी। यह पहल समाज, संस्कृति और सद्भाव का मेल है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत से जोड़ने में सहायक बनेगा।