Muzaffarnagar: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर शाकांशा चेंबर ऑफ साइंस एजुकेशन ने वृक्षारोपण अभियान चलाया जिसमें शाकांशा चेंबर ऑफ साइंस एजुकेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शशांक गोयल, सचिव निशांत शर्मा व अन्य कार्यकर्ता शामिल हुए। वृक्षारोपण के साथ ही साथ शशांक गोयल ने लोगों को ग्लोबल वार्मिग से हो रही दिक्कत के बारे मे विस्तार से बताया
उन्होंने बताया कि आज पेड़ जिस गति से काटे जा रहे हैं और कंक्रीट का जंगल हर तरफ फैलाया जा रहा है ये आने वाले दिनों में और भी ज्यादा तापमान बढ़ने का कारण बनेगा जो इंसान के लिए किसी भी प्रकार से अनुकूल नहीं रहेगा। उन्होंने बताया कि कई ऐसी रिसर्च की रिपोर्ट है जो बताती है कि धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है क्योकि तेजी से पेड़ काटे जा रहे और भूमिगत जल को नष्ट किया जा रहा है। विकास के नाम पर तेजी से फैल रहे कंक्रीट जंगल इन सब की मुख्य वजह है। तेजी से सड़के, हाइवे बनाए जा रहे है मल्टी स्टोरी भवन बनाए जा रहे है और सभी में कई कई A.C. लगे रहते है वे अलग गर्म हवा को छोड कर वातावरण गर्म कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि पहले सड़को के किनारे खंड़जा होता था जो कि इस तरह से बनाया जाता था कि बरसात के पानी को अवशोषित कर जमीन के अन्दर तक जाने दे।सड़क नई बनती भी थी तो इस तरह से बनती थी कि पहले वाली को उखाड़ कर नई सडक बनाई जाती थी ताकि भूमिगत जल की व्यवस्था सुचारू बनी रहे।परन्तु अब सडकें न सिर्फ पक्की बनाई जा रही है अपितु पहली वाली को बिना तोडे उसी के ऊपर बनाते जा रहे है जिससे बरसात का सारा पानी नाले से होता हुआ नदी और फिर समुद्र में जा मिलता है।
उन्होंने कहा कि यहां यह कदापि नहीं कहा जा रहा है कि विकास नहीं होना चाहिए या सड़क पर साफ सफाई की व्यवस्था नही होनी चाहिए। मुद्दा बस ये है कि भवन, इमारत या सडकों के लिए काटे जा रहे पेडों के बदले उसी इलाके में उतने ही पेड लगाए जाने चाहिए। शहर के बाहर या शहर के बीच में कही भी पेड़ की संख्या में कमी नहीं आनी चाहिए। डिवाइडर के बीच वाले हिस्सों में धोडी – थोडी दूरी पर पेड़ लगाए जाने चाहिए, जिन्हें समय-समय पर काट-छांट कर इस तरह से व्यवस्थित किया जा सकता है ताकि वे चल रहे वाहन को दिक्कत न पहुंचाए। क्योंकि पेड़ पौधे न सिर्फ मिट्टी के कटाव को रोकते है अपितु बरसात को भी लाने में सहायक होते है
इसके साथ साथ भूमिगत जल की मात्रा बढ़ाने के लिए व्यवस्था बनाने के साथ-साथ अनावश्यक जल बर्बादी रोकने के लिए लोगों को ख़ुद से ही समझना होगा। अन्यथा एक दिन वह भी अवश्य आ जाएगा जब पानी भी खरीद खरीद कर ही पीना पड़ेगा और शायद शुद्ध हवा भी।
