मुजफ्फरनगर।(Muzaffarnagar News)श्री श्यामा श्यामा मंदिर में शिवपुराण कथा में आज कथा वाचक पंडित जगमोहन भारद्वाज जी ने माता सती और शिव की कथा प्रसंग की कथा विस्तार से सुनाई. दक्ष प्रजापति की सभी पुत्रियां गुणवती थीं। फिर भी दक्ष के मन में संतोष नहीं था। वे चाहते थे उनके घर में एक ऐसी पुत्री का जन्म हो, जो सर्व शक्ति-संपन्न हो अतरू दक्ष एक ऐसी ही पुत्री के लिए माता भगवती की तपस्या करने लगे।
भगवती आद्या ने प्रकट होकर कहा, श्मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। तुमको क्या चाहिए दक्ष ने तप करने का कारण बताया तो मां बोली मैं स्वयं पुत्री रूप में तुम्हारे यहां जन्म धारण करूंगी। भगवती आद्या ने सती रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया। सती दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अलौकिक थीं। सती बाल्यावस्था से ही शिव की तपस्या करने लगी थी, जब सती विवाह योग्य हो गई
तो दक्ष को उनके लिए वर की चिंता होने लगी। उन्होंने ब्रह्मा जी से इस विषय में परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने कहा, सती आद्या की अवतार हैं। आद्या आदि शक्ति और शिव आदि पुरुष हैं। अतः सती के विवाह के लिए शिव ही योग्य और उचित वर हैं। दक्ष ने ब्रह्मा जी की बात मानकर सती का विवाह भगवान शिव के साथ कर दिया। सती कैलाश में जाकर भगवान शिव के साथ रहने लगीं। भगवान शिव के दक्ष के दामाद थे, किंतु कई कारणों से दक्ष के ह््रदय में भगवान शिव के प्रति बैर और विरोध भाव पैदा हो गया। एक बार देवलोक में ब्रह्मा जी ने धर्म के निरूपण के लिए एक सभा का आयोजन किया था।
सभी बड़े-बड़े देवता सभा में एकत्र हुए। भगवान शिव भी इस सभा में बैठे थे। सभा मण्डल में दक्ष का आगमन हुआ। दक्ष के आगमन पर सभी देवता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान शिव खड़े नहीं हुए। उन्होंने दक्ष को प्रणाम भी नहीं किया। फलतः दक्ष ने अपमान का अनुभव किया। केवल यही नहीं, उनके ह््रदय में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या की आग जल उठी। वे उनसे बदला लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। एक बार सती को पता लगा की उनके पिता दक्ष बड़ा यज्ञ कर रहे है माता सती ने शिव से यज्ञ में जाने की कही, शिव ने माता सती से कहा की हमे यज्ञ में आमंत्रित नही किया गया इसलिए हमारा वहां जाना उचित नही होगा,माता सती ने कहा की मेरे पिता के घर में यज्ञ है पुत्री तो पिता के घर बिन बुलाए भी जा सकती है इस यज्ञ में अवश्य मेरी सभी बहनें आएंगी। उनसे मिले हुए बहुत दिन हो गए है
भगवान शिव ने उत्तर दिया, इस समय वहां जाना उचित नहीं होगा। आपके पिता मुझसे बैर रखते हैं हो सकता हैं वे आपका भी अपमान करें। भगवान शिव ने उत्तर दिया, विवाह हो जाने पर लड़की अपने पति की हो जाती हैं। पिता के घर से उसका संबंध टूट जाता हैं। लेकिन सती पीहर जाने के लिए हठ करती रहीं। अपनी बात बार-बात दोहराती रहीं। उनकी इच्छा देखकर भगवान शिव ने उनके पिता के घर जाने की अनुमति दे दी। उनके साथ अपने गण नंदी को भी साथ में भेज दिया,दक्ष के यहां सती से किसी ने भी प्रेमपूर्वक वार्तालाप नहीं किया। दक्ष ने सती से कहा तुमको यज्ञ में आमंत्रित नही किया तुम क्यों आई हो, पिता के कटु और अपमानजनक शब्द सुनकर भी सती मौन रहीं। वे उस यज्ञमंडल में गईं जहां सभी देवता और घ्षि-मुनि बैठे थे तथा यज्ञकुण्ड में धू-धू करती जलती हुई अग्नि में आहुतियां डाली जा रही थीं। सती ने यज्ञमंडप में सभी देवताओं के तो भाग देखे, किंतु भगवान शिव का भाग नहीं देखा।
वे भगवान शिव का भाग न देखकर अपने पिता से बोलीं पितृश्रेष्ठ! यज्ञ में तो सबके भाग दिखाई पड़ रहे हैं किंतु कैलाशपति का भाग नहीं हैं। आपने उनका भाग क्यों नहीं रखा? दक्ष ने गर्व से उत्तर दिया मैं तुम्हारे पति शिव को देवता नहीं समझता। वह तो भूतों का स्वामी, नग्न रहने वाला है। वह देवताओं की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं हैं। सती के नेत्र लाल हो उठे। उनका मुखमंडल प्रलय के सूर्य की भांति तेजोदिप्त हो उठा। उन्होंने पीड़ा से तिलमिलाते हुए कहा ओह! मैं इन शब्दों को कैसे सुन रहीं हूं मुझे धिक्कार हैं। देवताओ तुम्हें भी धिक्कार हैं! तुम भी उन कैलाशपति के लिए इन शब्दों को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के प्रतीक हैं और जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। नारी के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता हैं।
जो नारी अपने पति के लिए अपमानजनक शब्दों को सुनती हैं उसे नरक में जाना पड़ता हैं। हे पृथ्वी, हे आकाश, हे देवताओं सुनो! मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया हैं। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती। सती अपने कथन को समाप्त करती हुई यज्ञ के कुण्ड में कूद पड़ी। जलती हुई आहुतियों के साथ उनका शरीर भी जलने लगा।
यज्ञमंडप में खलबली पैदा हो गई, हाहाकार मच गया। देवता उठकर खड़े हो गए।शिव आदेश से वीरभद्र ने आकर देखते ही देखते दक्ष का मस्तक काटकर फेंक दिया। भगवान शिव प्रचंड आंधी की भांति यज्ञ स्थल पहुंचे। सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव अपने आपको भूल गए। सती के प्रेम और उनकी भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया।जिन्होंने काम पर भी विजय प्राप्त की थी और जो सारी सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखते थे। वे सती के प्रेम में खो गए, बेसुध हो गए।
भगवान शिव ने उन्मत की भांति सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रख लिया। वे सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रूक गई, जल का प्रवाह ठहर गया और रुक गईं देवताओं की सांसें।
सृष्टि व्याकुल हो उठी, सृष्टि के प्राणी पुकारने लगेश् त्राहिमाम! त्राहिमाम! भयानक संकट उपस्थित देखकर सृष्टि के पालक भगवान विष्णु आगे बढ़े। वे भगवान शिव की बेसुधी में अपने चक्र से सती के एक-एक अंग को काट-काट कर गिराने लगे। धरती पर इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे। जब सती के सारे अंग कट कर गिर गए, तो भगवान शिव पुनः अपने आप में आए। जब वे अपने आप में आए, तो पुनः सृष्टि के सारे कार्य चलने लगे।
धरती पर जिन इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे थे, वे ही स्थान आज शक्तिपीठ माने जाते हैं। आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं, उपासना होती हैं। धन्य था शिव और सती का प्रेम। शिव और सती के प्रेम ने उन्हें अमर और, वंदनीय बना दिया।सती के विरह में शंकरजी की दयनीय दशा हो गई। वे हर पल सती का ही ध्यान करते रहते और उन्हीं की चर्चा में व्यस्त रहते। उधर सती ने भी शरीर का त्याग करने के उपरांत राजा हिमाचल के घर में पुत्री रूप में जन्म लेकर शिव की तपस्या में लीन हो गई फिर से देवताओं ने भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से कराया. माता पार्वती ने ही माता महाकाली के रूप में अवतार लिया. शिवशक्ति दोनो एक है शिव ही शक्ति है शक्ति ही शिव है.आज की कथा के यजमान राकेश शर्मा रहे, ललित अग्रवाल,हरीश गोयल,पंडित हंसराज भार्गव,डा.सुभाष,अमर नाथ,आदि का सहयोग रहा,