Om Birla said Young generation should promote Hindi instead of symbol of slavery

ओम बिरला
– फोटो : अमर उजाला

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भाषा ही राष्ट्र की असल पहचान होती है। भारत की एकता व विविधताओं को जोड़ने में भाषा का विशेष महत्व है। देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने में हिंदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही वजह है कि हिंदी को देश की आत्मा के रूप में पहचान मिली है। यह बातें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने रविवार को इटावा हिंदी सेवा निधि के 32 वें सारस्वत समारोह में कहीं।

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उन्होंने कहा कि क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, वरिष्ठ कवियों ने हिंदी भाषा को उत्कर्ष पर ले जाने का कार्य किया है। भावी पीढ़ी को इसे बढ़ाने का कार्य करना चाहिए। गुलामी वाली भाषाओं का उपयोग निराशाजनक है। संविधान का जब निर्माण हुआ तब देश में अलग-अलग भाषा बोली जाती थी, इसलिए हिंदी को देश की आत्मा कहा जाता है।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों में प्रधानमंत्री मोदी जब द्विपक्षीय वार्ता करते हैं तो हिंदी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। इससे हिंदी की धाक बढ़ी है। कहा, विदेशों में जब द्विपक्षीय वार्ता होती है तो अन्य देशों के प्रतिनिधि अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में ही संवाद करते हैं। ऐसा नहीं कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती है, लेकिन वह क्षेत्रीय भाषा में इसलिए बोलते हैं कि इससे आमजन तक उनकी बात आसानी से पहुंच सके।

कहा कि अब समय बदल गया है। देश की संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट में 22 भाषाओं का रूपांतरण किया जा रहा है। हिंदी के साथ मानवीय संवेदनाएं जुड़ी हुई हैं। आजादी की लड़ाई में हुए जनआंदोलन में हिंदी भाषा का अहम योगदान रहा। लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त ने इतने बड़े सांविधानिक पद पर होने के बावजूद हिंदी को बढ़ाने के लिए पूरे जीवन काम किया। इसकी बानगी तब देखने को मिली जब उन्होंने बिना स्टेनो के 4000 फैसले हिंदी में लिखे थे। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। इसकी वजह से उन्हें महान विभूतियों में गिना जाता है।



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