
अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। 1975 में आपातकाल के दौरान जिसे चाहा, उसे पुलिस ने जेल में बंद कर दिया। फिर चाहें कोई शिक्षक हो या विद्यार्थी। जेल में तमाम यातनाएं दी गईं। जेल जाने वाले परिजनों को भी डराया-धमकाया गया। माफीनामा लिखने के लिए मजबूर किया गया। अमर उजाला से बातचीत के दौरान आपातकाल के दौरान का ये दर्द लोकतंत्र सेनानियों ने बताया किया है।
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लोकतंत्र सेनानी कल्याण परिषद के अध्यक्ष आवास विकास निवासी वीरन कुमार साहू ने बताया कि देश में जब आपातकाल की घोषणा की, तब वह इंटरमीडिएट के विद्यार्थी थे। सरकार विरोधी नारे लगाने के आदेश में उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया था। जब जेल गए तो देखा कि देश भले ही 1947 में आजाद हो गया हो लेकिन बैल की जगह लोगों से कुएं से पानी निकलवाया जा रहा है। जेल में इसका विरोध किया और अनशन शुरू कर दिया। कहा कि तब तक भोजन नहीं करेंगे, जब तक ये व्यवस्था नहीं बदलती है। अगले दिन जेल प्रशासन ने कुएं से पानी निकालने के लिए बैलों को लगाया। कहा कि जेल में आपातकाल के दौरान बंद लोगों को यातनाएं दी जाती थीं। पूछा जाता था कि कौन-कौन आपातकाल के विरोध में काम कर रहा है। लिखित माफी मांगने के लिए कहा जाता था। उन्होंने जेल से ही इंटरमीडिएट की परीक्षा दी। जिला कारागार से बंद गाड़ी में प्रैक्टिकल दिलवाने के लिए विद्यालय ले जाया गया। कहा कि उस दौर में बड़ी मुश्किल से दिन कटे।