
प्रदर्शनी में बंगलूरू के आर्ची मारू लेकर आए सिक्का जिसे लेकर दावा किया गया है कि यह गांधार में
संवाद न्यूज एजेंसी
लखनऊ। अवध मुद्रा उत्सव के तीसरे दिन शनिवार को प्रदर्शनी में छठी शताब्दी ईसा पूर्व (2600 साल पुराना) का बेंट बार नाम का गांधार में चलने वाला सिक्का संग्रह के शौकीनों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, इसे पहली भारतीय मुद्रा के रूप में जाना जाता है। वह भी तब, जब कोई लिपि तक अस्तित्व में नहीं आई थी।
बेंट बार नाम के इस सिक्के पर लिखावट के तौर पर सिर्फ एक फूल और दूसरा सूर्य का चिह्न अंकित है। हजारों साल पुराने सिक्कों और सांस्कृतिक विरासत की इस थाती का प्रदर्शन निरालानगर स्थित एक होटल में हुआ। जहां, प्रदर्शनी में क्रेता-विक्रेता समेत सिक्कों के संग्रह के शौकीनों की काफी भीड़ रही।
प्रदर्शनी में काउंटर नंबर एक पर बंगलूरू से आए आर्ची मारू अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के वारिस हैं। उन्होंने बताया कि बेंट बार नाम का चांदी का यह सिक्का छठी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जिसका चलन तब गांधार (अब अफगानिस्तान) में था। पारिवारिक विरासत को संभालते हुए उन्होंने पेपर मनी ऑफ इंडिपेंडेंट एंड रिपब्लिक इंडिया नाम से एक किताब भी लिखी है, जिसमें ब्रिटिश राज से अब तक की मुद्रा के चलन व उनके बदलावों के इतिहास दर्ज हैं। हालांकि, उन्होंने इस सिक्के की कीमत बताने से इन्कार कर दिया।
साढ़े पांच लाख रुपये में बिका काकतीय राजवंश का सिक्का
100 साल पुराने ब्रिटिश शासन काल के 1000 के नोट भी प्रदर्शनी में दिखे, जिनकी कीमत छह लाख रुपये तक बताई गई। प्रदर्शनी में सिक्कों की बोली भी लगी। ऑक्शनर संदीप कुमार ने बताया कि 700 सिक्कों की नीलामी हुई, जिसमें 1500 साल पुराने दक्षिण भारत के काकतीय राजवंश का सिक्का 5.5 लाख रुपये का बिका।
समुद्र गुप्त के शासनकाल का अश्वमेघ यज्ञ का सिक्का
प्रदर्शनी में गुप्तवंश की 335-310 शताब्दी पूर्व के समुद्र गुप्त के शासन काल का अश्वमेघ यज्ञ का सिक्का भी दिखा। उस वक्त मुद्रा के चलन में सोने का इस्तेमाल होता था। इस सिक्के की कीमत 5.5 लाख रुपये बताई गई।
10 किलो चांदी का हुक्का भी आकर्षण का केंद्र
गोंडा जनपद से आए बलरामपुर रियासत के वारिस पुंडरिक कुमार के स्टॉल पर उनका 10 किलो वजनी चांदी से बना हुक्का भी प्रमुख आकर्षण रहा। बताया कि उनका हुक्का 200 साल पुराना है। उन्होंने प्रदर्शनी में बहुमूल्य पत्थर, एक खरल और रियासत की अन्य विरासती साज-सज्जा के सामान भी दिखाए।
सिक्कों के संग्रह के शौकीन एलयू के प्रोफेसर भी पहुंचे
प्रदर्शनी में सिक्कों के संग्रह के शौकीन लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विभूति राय भी पहुंचे। जियोलॉजी विभाग में प्रोफेसर ने शजर पत्थर खरीदे। उन्होंने बताया कि इन पत्थरों में कुदरती सीनरी दिखती है। यह बांदा की केन नदी में मिलते हैं, जो कि डेढ़ अरब साल पुराने हैं। इसके अलावा अवध के दूसरे नवाब नसरुद्दीन हैदर के जमाने के 10,000 रुपये के सिक्के भी खरीदे।