Pilibhit Lok sabha big issue of human-wildlife conflict remains buried in caste equations in elections

पीलीभीत में मानव-वन्यजीव संघर्ष है बड़ा मुद्दा
– फोटो : अमर उजाला

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पीलीभीत में पांच साल में मानव-वन्यजीव संघर्ष में 21 लोगों को जान गंवानी पड़ी। इनमें अधिकतर किसान व मजदूर तबके के लोग शामिल रहे। जिले की करीब एक लाख की आबादी इससे प्रभावित है। इसके बावजूद यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। एक बार फिर लोकसभा चुनाव आया तो दावों और वादों का दौर शुरू हो गया। जातीय समीकरण साधने के लिए लालायित नेताओं व राजनीतिक दलों की फेहरिस्त से यह मुद्दा ही गायब है।

72 हजार वर्ग हेक्टेयर में फैले पीलीभीत टाइगर रिजर्व में वन विभाग 72 बाघों के होने का दावा करता है। वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां 100 से अधिक बाघ हैं। वर्ष 2014 में टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलने के बाद से ही यहां हालात बिगड़ते चले गए। बाघों ने जंगल से बाहर निकलकर लोगों को मारना शुरू कर दिया। 

रोकथाम के बजाय वन विभाग भी उल्टा राग अलापता रहता है। उनका कहना है कि लोग लकड़ियां बीनने के लिए जंगल में जाते हैं और बाघ का शिकार हो जाते हैं। हालात इस कदर गंभीर हो चुके हैं कि इस साल के शुरुआती तीन महीने में ही बाघ के हमलों में चार लोगों की जान जा चुकी है। 

जिले की 720 ग्राम पंचायतों में 160 गांव जंगल के किनारे बसे हैं। इनमें 50 गांव बाघों के हमले के लिहाज से संवेदनशील हैं। इन गांव की एक लाख से ज्यादा की आबादी बीते पांच साल से सरकार की तरफ टकटकी लगाए हुए है। लोगों ने अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक के दरवाजे खटखटाए। हालात बद से बदतर होते चले गए लेकिन तंत्र खामोश बैठा रहा। 



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