बरेली जिले की औद्योगिक पहचान को पुख्ता करने वाले प्लाईवुड उद्योग को इस समय पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है। स्थानीय स्तर पर लकड़ियों का टोटा है। ऐसे में उद्यमी ऑस्ट्रेलिया, तंजानिया और इंडोनेशिया से लकड़ियां मंगवा रहे हैं। इससे जहां प्लाईवुड उद्योग रफ्तार भर रहा है, वहीं 10-12 हजार लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।

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जिले के परसाखेडा, फरीदपुर समेत अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में प्लाईवुड के करीब 40 उद्यम संचालित हो रहे हैं। यहां की बनी प्लाईवुड उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, गुजरात, असम आदि राज्यों को भेजी जाती है। प्लाईवुड के निर्माण में यूकेलिप्टस, पापुलर आदि की लकड़ियों का इस्तेमाल होता है। यह दोनों लकड़ियां प्रदेश के कई जिलों से यहां आती हैं। कारोबारियों के मुताबिक, अब ये लकड़ियां मिलनी कम हो गई हैं। हालत यह है कि इन कारखानों में जहां 60 फीसदी स्थानीय लकड़ियों का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं 40 फीसदी विदेश से मंगाई जा रही है। 

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दाम में नहीं आया अंतर

विदेश से लकड़ियों का आयात होने के बावजूद प्लाईवुड की कीमतों पर असर नहीं पड़ा है। कारोबारी बताते है कि विदेश में लकड़िया करीब 75 फीसदी सस्ती मिल जाती हैं, पर कीमत से ज्यादा भाड़ा चुकाना पड़ता है। कारखाने तक आकर विदेशी लकड़ियों की कीमत स्थानीय लकड़ी के बराबर ही बैठती है। इस वजह से उत्पादन लागत प्रभावित नहीं होती। इसी लिए प्लाईवुड की कीमत भी स्थिर है।  



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