pollution is very dangerous causing fatal diseases to children under five years of age be careful

नवजात शिशु, new born baby
– फोटो : अमर उजाला

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अगर पांच साल से कम उम्र के आपके बच्चे को तेज चलने या काम करने पर सांस फूलती हो या लगातार खांसी आती है तो यह प्रदूषण के कारण हुए निमोनिया के लक्षण हैं। पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर प्रदूषण बुरा असर डाल रहा है। खासकर फेफड़ों, ह्रदय और मस्तिष्क पर असर के कारण बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें बढ़ रही हैं।

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यह कहना है कि एम्स दिल्ली के पूर्व विभागाध्यक्ष और क्लीन एयर प्रोग्राम से जुड़े चिकित्सक डॉ. अरविंद गुप्ता का। वो होटल जेपी पैलेस में चल रही एसीकॉन-2024 काॅन्फ्रेंस में प्रतिभाग करने आगरा आए हैं। क्लीन एयर प्रोग्राम में 20 एसोसिएशनों को जोड़ चुके डॉ. अरविंद गुप्ता ने बताया कि प्रदूषण से फेफड़ों के साथ ह्रदय, मस्तिष्क और सिर से पैर तक शरीर के सभी अंग प्रभावित हो रहे हैं।

पूरे उत्तर भारत में बिगड़ रही हवा से हमारे पांच साल से कम उम्र के बच्चे ज्यादा प्रभावित हैं। धूल और धुएं के कारण हर अंग पर खराब असर पड़ रहा है। इसकी जानकारी न आम लोगों को है, न ही चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों को।

एसीकॉन में खास बातचीत में उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों में रात में अक्सर ठीक से नींद न आने की शिकायतें मिल रही हैं। फेफड़ों में ठीक से ऑक्सीजन न पहुंचने के कारण सांस लेने में उन्हें दिक्कत हो रही है। स्कूल में बच्चों के सो जाने की शिकायतें बढ़ी हैं।

उन्होंने कहा कि यह सभी लक्षण प्रदूषण के कारण पनप रहे हैं। इससे बच्चों की शिक्षा के साथ शारीरिक विकास प्रभावित हो रहा है। प्रदूषण के प्रति जागरूक करने की मुहिम में उन्होंने सभी का सहयोग मांगा और कहा कि हर किसी की जिम्मेदारी प्रदूषण नियंत्रण है। ऐसा करके वह अपने बच्चों की सेहत भी सुधार सकते हैं। जो भी प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, वह अपने बच्चों को भी इसका शिकार बना रहे हैं।

मोटापे ने 400 फीसदी बढ़ाए हर्निया के केस

एसीकॉन में हिस्सा लेने के लिए नासिक से आए एब्डोमिनल वॉल रीकन्सट्रक्शन सर्जन्स कम्यूनिटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रमोद शिंदे ने हर्निया से बचाव के उपाय बताए। डॉ. शिंदे ने बताया कि मोटापे, गलत खानपान और जीवनशैली के कारण कुछ साल में ही हर्निया के मामले 400 फीसदी तक बढ़ गए हैं। सर्जरी के मामलों के बढ़ने के कारण भी ऐसा हो रहा है।

डॉ. शिंदे ने एसीकॉन में बताया कि छोटे हर्निया होने पर ऑपरेशन कराने पर सफलता की संभावना अधिक रहती है। लापरवाही बरतने पर जब हर्निया बढ़ जाता है, तब दोबारा ऑपरेशन करने की आशंका रहती है। हर्निया की सर्जरी में अब ऐसी जाली डाली जाने लगी है, जो शरीर में दो साल के अंदर घुल जाती है।

ऐसा उन लोगों में किया जाता है, जिसमें गर्भावस्था के कारण सर्जरी की संभावना होती है। नई तकनीक में त्वचा की सात परतों में से मांसपेशियों के बीच की परत में जाली डाली जा रही है। इससे मरीजों को काफी राहत मिल रही है। उन्होंने बताया कि सर्जरी की संख्या बढ़ने के कारण हर्निया के मामलों में इजाफा हुआ है। 20 से 60 साल की महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान सर्जरी होने से हर्निया के केस ज्यादा हैं। नाभि और जांघ के हर्निया के केस अन्य मामलों से ज्यादा हैं।

 



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