
Rajiv Gandhi
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
साल 1984 में देश की सियासत में एक बड़ा बदलाव अया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बड़े पुत्र राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। राजीव के नेतृत्व में हुए चुनाव में कांग्रेस ने केंद्र से लेकर राज्यों तक जबरदस्त सफलता पाई। पर, जनता के मिजाज को शायद राजीव समझ नहीं पाए।
कई अहम मुद्दों पर वे दो कदम आगे बढ़े तो चार कदम पीछे खीचे। यहीं से कांग्रेस के पराभव की शुरुआत हो गई। बात शाहबानो मामले की। न्यायालय ने तलाकशुदा शाहबानो के पति को गुजाराभत्ता देने का आदेश दिया। मुस्लिमों ने इसे अपने पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप माना। मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा।
जब सर्वोच्च न्यायालय ने भी फैसला बहाल रखा, तो मुस्लिम संगठनों ने भी विरोध शुरू कर दिया। बताया जाता है कि कुछ लोगों की सलाह पर राजीव गांधी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए संसद से इस फैसले को पलट दिया। उन्हीं की कैबिनेट में शामिल आरिफ मोहम्मद खां ने इसे कट्टरपंथी मुस्लिमों के सामने समर्पण बताते हुए मंत्रिमंडल तथा कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।
शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी की भूमिका ने संघ परिवार को नया हथियार दे दिया। राजीव पर आरोप लगे कि उन्होंने मुसलमानों को खुश करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का फैसला पलटा। इसी बीच फैजाबाद की जिला अदालत ने अयोध्या में विवादित ढांचे का ताला खोलने का आदेश दे दिया।
