रामनगर की रामलीला में कभी खुशियां बाहें फैलाए निहाल करती हैं तो कभी पलकों की कोर से श्रद्धा की डोर जुड़ती है। गृहस्थ हो या साधु-संन्यासी हर एक की 31 दिनी अनुष्ठान में हर स्वरूप देवरूप में नजर आता है। नौवें दिन रविवार को हल्की बूंदाबांदी के बीच छाता और रेनकोट पहनकर लीलाप्रेमी लीला देखते रहे। प्रसंगानुसार भक्तों की भाव भंगिमा लगातार बदलती गई। प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक की सूचना के साथ लीलाप्रेमी आनंदानुभूति से मगन मन झूम उठे।
टाॅर्च की रोशनी में रामचरित मानस की चौपाइयां गुनगुनाने के उनके अंदाज में यह भाव नजर आया तो कैकेयी के कोप भवन जाने और उसका उद्देश्य समझ आने पर ह्रदय की वेदना का अहसास कराया। दशरथ के विलाप भरे संवाद समेत अवध कांड के मार्मिक प्रसंगों पर श्रद्धालुओं के पलकों की कोरें गीली हो गईं।
पिता के वचनों का मान रखने की खातिर प्रभु श्रीराम के सहर्ष वन जाने की प्रतिबद्धता और नई नवेली दुल्हन सीता के भी सुख-वैभव त्याग इसे अपना भाग्य मानते हुए पति के साथ निभाने की प्रतिबद्धता विभोर कर गई। रामलीला के नौवें दिन कैकेई कोपभवन की लीला उदास माहौल में हुई। इस लीला के साथ ही अयोध्या कांड की शुरुआत हुई।