Read the story of criminal Vinod Upadhyay.

पुलिस मुठभेड़ में मारा गया अपराधी विनोद उपाध्याय।
– फोटो : अमर उजाला।

विस्तार


पुलिस मुठभेड़ में मारे गये विनोद उपाध्याय ने जिस माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला की राह पर चलना शुरू किया था, आखिरकार वही अंजाम भी पाया। एसटीएफ ने उसे भी श्रीप्रकाश की तरह ही मुठभेड़ में मार गिराया। उसने अपने बचाव के लिए राजनीतिक ओट लेने की कोशिश भी की। चुनाव भी लड़ा। लेकिन हार गया तो पूरी तरह से अपराध की दुनिया का ही होकर रह गया।

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, गोरखनाथ थाने के हिस्ट्रीशीटर विनोद उपाध्याय ने वर्ष 1999 में धमकी और मारपीट के मामले से अपराध की दुनिया में कदम रखा था। वर्ष 1999 से लेकर 2023 के बीच के 25 साल में उस पर 45 केस दर्ज हुए। इसके साथ ही उस पर चार बार गैंगस्टर की कार्रवाई भी हुई। इसके बाद वर्ष 2001 में राजू निवासी जटेपुर, दक्षिणी धर्मशाला, थाना गोरखनाथ की हत्या में वह आरोपी बना। 2004 में गोरखपुर जेल में बंद रहने के दौरान नेपाल के अपराधी जीत नारायण मिश्र ने विनोद को एक थप्पड़ मार दिया। जेल से छूटने पर सात अगस्त 2005 को संतकबीर नगर में विनोद ने जीत नारायण की हत्या कर थप्पड़ का बदला लिया।

ये भी पढ़ें – राम मंदिर: अभी विराजमान रामलला को केंद्रित करके ही होंगे अनुष्ठान, जानिए किस मूर्ति की होगी प्राण प्रतिष्ठा

ये भी पढ़ें – यूपी: प्राण प्रतिष्ठा और गणतंत्र दिवस की ड्यूटी में लगे पुलिस कर्मियों के स्मार्ट फोन बैन, डीजी ने दिया आदेश

इस घटनाक्रम में जीत नारायण का बहनोई गोरेलाल भी मारा गया। इसके अलावा गोरखपुर में हिंदू युवा वाहिनी के नेता सुशील सिंह को अगवा कर पीटने का भी आरोप विनोद पर लगा। रेलवे, एफसीआई के ठेके हासिल करने के लिए सरेआम गुंडई भी उसने की थी। इसके बाद 2007 में लखनऊ के हजरतगंज में मो. अफजल उर्फ फैजी निवासी नरसिंहपुर, थाना तिवारीपुर, जिला गोरखपुर की हत्या में भी उसका नाम सामने आया था। इसी वर्ष वह बसपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी गोरखपुर से लड़ा। लेकिन हार का मुंह देखना पड़़ा। इसके बाद वह फिर अपराध में सक्रिय हो गया।

2014 में गोरखपुर के कैंट थाना में लाल बहादुर यादव निवासी चैरिया थाना बेलीपार, गोरखपुर की हत्या में भी वह शामिल था। अब तक अलग-अलग थाने में उस पर संगीन धाराओं में 45 केस दर्ज किए जा चुके हैं। इनमें उस पर चार बार गैंगस्टर की कार्रवाई भी की जा चुकी है। श्रीप्रकाश शुक्ला के करीबी सत्यव्रत राय का विनोद पहले करीबी था। बाद में रुपये के लेनदेन को लेकर उसका विवाद हो गया।

विनोद उपाध्याय 2022 की शुरुआत में 25 हजार रुपये का इनामी था। लेकिन साल भर में उस पर इनाम बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया गया। वह प्रदेश के टॉप 61 व गोरखपुर जिले के टॉप टेन माफियाओं में शुमार था। इसमें विनोद के चार साथी भी शामिल हैं। पिछले एक साल में विनोद पर जालसाजी और रंगदारी के गुलरिहा, शाहपुर, रामगढ़ताल थाने में आठ अन्य केस दर्ज हुए। कोर्ट से एनबीडब्लू पर पुलिस को विनोद की तलाश भी थी। पिछले दिनों गोरखपुर विकास प्राधिकरण की तरफ से विनोद के अवैध निर्माण पर बुलडोजर भी चलाया गया था। उसपर जिस तरह पुलिस लगातार मुकदमें और इनाम की रकम में बढ़ोतरी कर रही थी, उसे देखते हुए उसके एनकाउंटर की आशंका जताई जा रही थी। शुक्रवार को एसटीएफ के साथ हुई मुठभेड़ के बाद विनोद के आपराधिक जीवन का अंत हो गया।

कई जिलों में थे ठिकाने

व्यापारियों में विनोद का खौफ था। वह जिन व्यापारियों से रंगदारी मांगता था। वह उससे डरकर पैसा दे देते थे। उनमें भय था कि रंगदारी के पैसे नहीं देने पर कभी भी वह उन पर जानलेवा हमला कर सकता है। पुलिस से बचने के लिए यूपी के कई जिलों में विनोद ने अपने ठिकाने बना रखे थे। पुलिस विभाग में भी उसका नेटवर्क इतना तेज था कि उसके ठिकाने पर एसटीएफ टीम के पहुंचने की जानकारी पहले ही हो जाती थी। इससे वह टीम के पहुंचने से पहले ही फरार हो जाता था।

पेशेवर अपराधी के अंत से पुलिस ने ली राहत की सांस

सुपारी लेकर हत्या, लूट व प्रतिष्ठित व्यवसायियों से रंगदारी मांगने के आरोपी विनोद की आपराधिक फेहरिस्त काफी लंबी थी। उसने गोरखपुर, बस्ती, संतकबीरनगर, लखनऊ व आस-पास के जनपदों में हत्या, लूट, अवैध कब्जा, व्यापारियों व अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों से रंगदारी मांगने जैसी वारदात को अंजाम दिया था। उसके अंत से पुलिस ने राहत की सांस ली है।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *