कौन कहता भगवान आते नहीं मीरा जैसे बुलाते नहीं

(धर्म में यह कथा  ) “पर्वत सिंह बादल” ✍️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻(एक कथा के माध्यम से भाव को समझते है)

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शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।
शबरी की उम्र दस वर्ष थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी।
महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे। शबरी को समझाया “पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।”
अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- कब आएंगे..?           महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे। वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे। महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया।

आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए।ये उलट कैसे हुआ। गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ???

महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका।

महर्षि मतंग बोले-

पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।

अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ।

उनका कौशल्या से विवाह होगा।फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी।फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा।फिर प्रतीक्षा..

फिर उनका विवाह कैकई से होगा।फिर प्रतीक्षा..

फिर वो जन्म लेंगे, फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा।फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा। तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे।तुम उन्हें कहना आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये। उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा। और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।
                     शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। अबोध शबरी इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई।

वह फिर अधीर होकर पूछने लगी- “इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव???”।                                                 महर्षि मतंग बोले- “वे ईश्वर है, अवश्य ही आएंगे।यह भावी निश्चित है। लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते है। लेकिन आएंगे “अवश्य”…!

जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे। इसलिए प्रतीक्षा करना।वे कभी भी आ सकते है। तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे। शायद यही मेरे तप का फल है।”

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी।वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें है।

हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती।

कभी भी आ सकतें हैं।हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा। शबरी बूढ़ी हो गई।लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही।

और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरपड़े। शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी।

गुरु का कथन सत्य हुआ।भगवान उसके घर आ गए। शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया।
ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो। जय हो। जय हो। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-

“कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?”

राम मुस्कुराए- “यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य..?”

“जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।राम ने कहा- “तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।”
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“एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है। पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’।

”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न… उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है । और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है। जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है…(वानरी भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है। मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना…।”

राम मुस्कुराकर रह गए!!                                                  यह शबरी का भक्ति और विश्वास का सबसे सुंदर रूप था, जिसमें उसने बिना किसी शंका के, भगवान के आने का विश्वास किया था। वह ‘मार्जारी भाव’ में थी, जहाँ उसने अपने आपको पूरी तरह से भगवान के सृजन और संरक्षण के प्रति समर्पित कर दिया था, बिना किसी प्रयत्न या प्रयास के। वह जानती थी कि उसकी रक्षा और मार्गदर्शन भगवान स्वयं करेंगे, जैसे एक बिल्ली अपनी नन्ही संतान को बिना किसी चिंता के अपनी सुरक्षा में लेती है।


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राम ने शबरी के शब्दों को सुना और मुस्कुराए, क्योंकि वह जान गए थे कि शबरी की भक्ति का यह रूप ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास का प्रतीक था। वह शरणागत भाव, जिसमें भक्त भगवान पर पूरा भरोसा करता है और स्वयं को भगवान के भरोसे छोड़ देता है, यही सच्ची भक्ति का रूप है। शबरी ने अपनी साधना के माध्यम से यह सिद्ध किया कि भगवान के आशीर्वाद और समर्थन के बिना भक्त का कोई अस्तित्व नहीं होता, और जब भक्त पूरी तरह से आत्मसमर्पण करता है, तब भगवान उसका हाथ थामने आते हैं।

यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि भक्ति में न कोई प्रयास जरूरी है, न कोई बाधा, सिर्फ शुद्ध विश्वास और समर्पण ही ईश्वर की कृपा को आकर्षित करते हैं।

By Parvat Singh Badal (Bureau Chief Jalaun)✍️

A2Z NEWS UP Parvat singh badal (Bureau Chief) Jalaun ✍🏻 खबर वहीं जों सत्य हो

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