Report Card: This will be the biggest test for BSP in this election.

मायावती व आकाश आनंद।
– फोटो : amar ujala

विस्तार


सपा सुप्रीमो मायावती सूबे की सबसे प्रभावशाली व चतुर राजनेताओं में से एक मानी जाती हैं। सरकार चलाने के उनके कौशल और स्पष्टवादिता की चर्चा करते आज भी कई लोग मिल जाते हैं। वह तौल कर बोलती हैं और समय से तालमेल कर आगे बढ़ती हैं। वह हार नहीं मानतीं। यही वजह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वह वापसी करती आई हैं। कांग्रेस हो या भाजपा या फिर सपा, अपने से बड़े हिस्सेदार से हाथ मिलाकर आगे निकलने की अपनी विरल क्षमता उन्होंने बार-बार साबित की है। 

मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तीन बड़े फैसले किए। पहला, जीरो से दहाई में पहुंचाने वाले महागठबंधन से नाता तोड़ा। दूसरा, अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। तीसरा, 2022 के विधानसभा चुनाव में सबसे खराब नतीजे के बावजूद इंडिया गठबंधन की अपील ठुकराकर  लोकसभा चुनाव भी अकेले लड़ने का एलान किया। यूपी की जनता उनके इन फैसलों को किस नजरिए से लेती है, यह चुनाव इसकी कसौटी होगा।

महागठबंधन छोड़ना कितना सही

सबसे पहले बात महागठबंधन से अलग होने की। लंबे अर्से से चली आ रही  सियासी दुश्मनी के बावजूद 2019 में सपा-बसपा एक साथ मैदान में आईं। राष्ट्रीय लोकदल भी साथ था। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न जीतने वाली बसपा, महागठबंधन में शामिल होकर 10 सीटें पाने में सफल रही। सपा 2014 जितनी पांच सीटें ही जीत सकी। रालोद शून्य पर अटका रहा। महागठबंधन ने भाजपा विरोधी मतदाताओं को एक मजबूत विकल्प दिया था। इसे बड़ी सफलता तो नहीं मिली, लेकिन 2014 में 73 सीटें जीतने वाले राजग को 64 पर रोक दिया। निराश मतदाताओं का वर्ग महागठबंधन से भविष्य में बेहतर संभावनाओं के लिए आशान्वित था। पर, मायावती इससे अलग हो गईं। नतीजा ये हुआ कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा 403 सदस्यीय विधानसभा में एक सीट पर सिमट गई। यह चुनाव बताएगा कि 2019 के बाद लिए गए फैसलों व प्रयोगों से मायावती सत्ता विरोधी मतदाताओं का भरोसा जीतने में सफल हुईं या नहीं।

उत्तराधिकारी आकाश का पहला इम्तिहान

बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को 2019 के लोकसभा चुनाव में आगरा की रैली में पहली बार तब भाषण देने के लिए भेजा था, जब चुनाव आयोग ने उन पर 48 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया था। वह चुनाव सपा व रालोद से महागठबंधन कर लड़ा गया था। बसपा को इस चुनाव में 10 सीटें मिली थीं। 

  • महागठबंधन से बाहर निकलने के बाद मायावती ने दिसंबर-2023 में लोकसभा चुनाव-2024 की तैयारी को लेकर लखनऊ में एक बैठक बुलाई थी। उसी में आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। बार-बार परिवार से उत्तराधिकारी न होने की बात दोहराने के बाद भी उन्होंने ऐसा किया।
  • आकाश युवा हैं और विदेश में पढ़े-लिखे हैं, लेकिन जमीन से जुड़ नहीं पा रहे हैं। वह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं, लेकिन अपनी बुआ मायावती की तरह मीडिया के सवालों का सामना करने से बचते हैं। 
  • माना जा रहा है कि दलित समाज के युवा मतदाताओं में आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती पकड़ को देखने के बाद मायावती ने आननफानन युवा आकाश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर पार्टी में सक्रिय किया। आकाश को कई राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है। यह चुनाव बताएगा कि मायावती का अपने उत्तराधिकारी के साथ मैदान में उतरना कितना सफल रहा। इस चुनाव में पार्टी की परफॉर्मेंस से आकाश का भी आकलन होगा।

गिरता वोट शेयर भी चुनौती

मायावती ने वर्ष 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 206 जीत कर स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई थी। 2022 के चुनाव में उमाशंकर सिंह के रूप में बलिया से बीएसपी का सिर्फ एक विधायक चुनाव जीता। बसपा को 2007 में 30.43 फीसदी वोट मिले थे। 2019 में जब बसपा महागठबंधन में चुनाव लड़ी तो वोट शेयर 19.26 प्रतिशत पर पहुंच गया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर घटकर 12.88 फ़ीसदी ही रह गया। 

यूपी : लोकसभा चुनाव में बसपा की परफॉर्मेंस

वर्ष     सीटें जीतीं  वोट शेयर 

1989     02     9.86%

1991     01     8.32%

1996     06     20.06%

1998     04     20.09%

1999     14     22.08%

2004     19     24.67%

2009     20     27.42%

2014     00     19.06%

2019     10     19.43%

क्या त्रिकोण बनाकर वापसी कर पाएगी पार्टी

इंडिया गठबंधन ने भाजपा के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए मायावती को बार-बार न्योता दिया। इसके बावजूद मायावती ने चुनाव अकेले लड़ने का एलान किया। जानकार बताते हैं कि मायावती ने महसूस किया होगा कि गठबंधन से लड़ने पर उनका बेस वोट कई सीटों पर दूसरे के साथ शिफ्ट हो सकता है। ऐसे में उन्होंने राजग व सपा-कांग्रेस गठबंधन से अलग रहने का फैसला किया है। वह दोनों गठबंधनों के बीच त्रिकोण बनाकर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही होंगी। 

एकतरफा संवाद शैली

मायावती सोशल मीडिया एक्स के जरिए अपनी बातें रखती हैं। कभी पार्टी की कोई मीटिंग करती हैं तो शुरुआत में सिर्फ फोटोजर्नलिस्ट को तस्वीरें लेने भर का समय देती हैं। कभी कभार मीडिया के सामने आती भी हैं तो सवालों से बचने की कोशिश करती हैं। पार्टी के कर्ताधर्ता कोऑर्डिनेटर व अन्य नेताओं को भी मीडिया से बातचीत की इजाजत नहीं होती है। उनकी पार्टी के भीतर क्या हो रहा है, उनके फॉलोअर व समर्थक तब तक अंधेरे में रहते हैं, जब तक इसका मायावती आधिकारिक एलान नहीं करतीं। अपने इस एकतरफा संवाद शैली की वजह से उनके कोर वोटर तक उनसे कटने लगे हैं।

चुनाव एलान के एक सप्ताह बीते, सतीश परिदृश्य से गायब

बसपा में अपर कास्ट के बड़े चेहरों में सतीश चंद्र मिश्रा इकलौते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव तक मिश्रा व उनका परिवार सक्रिय नजर आ रहा था। लोकसभा चुनाव का एलान हुए एक सप्ताह बीत गए हैं, पर मिश्रा चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। इस बार न वह सम्मेलन-सभाएं करने निकले और न ही लखनऊ में दूसरे दलों के लोगों को पार्टियों में शामिल करने वाली जिम्मेदारी में ही नजर आ रहे हैं।

दस मौजूदा सांसदों में छह बाहर, इनमें से तीन अन्य दलों के बने प्रत्याशी

बसपा के दस सांसदों में से छह बाहर हो चुके हैं। इनमें से तीन अन्य दलों में प्रत्याशी भी बन चुके हैं। अमरोहा से दानिश अली कांग्रेस से मैदान में हैं। वहीं अंबेडकरनगर से रितेश पांडेय भाजपा से और गाजीपुर से अफजाल अंसारी सपा से टिकट हासिल कर चुके हैं। लालगंज से संगीता आजाद भाजपा में शामिल हो चुकी हैं और श्रावस्ती से राम शिरोमणि वर्मा को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव की कांग्रेस से नजदीकी छिपी नहीं है।



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