समय पूर्व प्रसव होने पर गंभीर हालत में सघन चिकित्सा कक्ष (एनआईसीयू) में भर्ती होने वाले नवजात की जान एक इंजेक्शन से बचेगी। इससे वेंटिलेटर पर निर्भरता कम होगी। इसे लिसा तकनीक कहते हैं। नवजात के ठीक होने की दर भी अधिक होगी। एसएन मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में हुई कार्यशाला में पौलेंड के डॉ. बोरिस क्रैमर ने इसका प्रशिक्षण दिया।
बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज कुमार ने बताया कि बाल रोग विभाग के एनआईसीयू में रोजाना 20-25 समय पूर्व प्रसव वाले गंभीर नवजात भर्ती होते हैं। इनको निमोनिया और फेफड़ों में संक्रमण मिलता है। वेंटिलेटर पर रखकर इलाज करते हैं। लिसा तकनीक में एक जीवनरक्षक इंजेक्शन को पतले पाइप के जरिये नवजात के सीधे फेफड़ों में पहुंचाया जाएगा। इससे निमोनिया और संक्रमण में तेजी से सुधार होता है।
पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. नीरज यादव ने बताया कि वेंटिलेटर से नवजात के फेफड़ों पर भी असर पड़ता है। लिसा तकनीक से नवजात के भविष्य में संक्रमण और निमोनिया होने का खतरा कम होगा। ये इंजेक्शन 10-12 हजार रुपये का आता है। कॉलेज प्रशासन इसके लिए शासन स्तर से प्रयास कर रहा है। लीजा तकनीक के बारे में सभी को प्रशिक्षण मिला और चिकित्सकों ने प्रश्न भी पूछे। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रामक्षितिज शर्मा ने बताया कि लिसा तकनीक वेंटिलेटर से बेहतर है। इससे फेफड़ों की कार्य क्षमता भी प्रभावित नहीं होगी। कार्यशाला में डॉ. राजेश्वर डायल, डॉ. मधु नायक, डॉ. संजीव अग्रवाल, डॉ. अनामिका गोयल, डॉ. शिखा गुप्ता, डॉ. मेघा अग्रवाल, डॉ. मधु सिंह, डॉ. दीपक पिप्पल, डॉ. मनीष सिंह और डॉ. देवेश तोमर आदि मौजूद रहे।
