SP-Congress alliance: Congress not ready to give up seats of its choice

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व कांग्रेस नेता राहुल गांधी।
– फोटो : अमर उजाला

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उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों को लेकर सपा और कांग्रेस के बीच संशय बरकरार है। कांग्रेस अपनी प्रथम वरीयता वाली सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है, जबकि सपा इन सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है। ऐसे में गठबंधन में दरार पड़ती दिख रही है। हालांकि दोनों पार्टी के नेता जल्द ही सीट का मसला सुलझाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन अंदरखाने हालात विपरीत है।

प्रदेश की 80 सीटों को कांग्रेस ने वरीयता के आधार पर तीन श्रेणी में बांटा है। पहली प्राथमिकता में उन सीटों को रखा है, जिसमें 2009 और 2014 में कांग्रेस विजेता रही है। साथ ही पिछले वर्ष नगर निकाय के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाली सीटों को भी वह अपनी प्राथमिकता में शामिल कर रही है। इस तरह पहली प्राथमिकता की 30 सीटों पर दावा किया।

सीट निर्धारित करने के लिए बनी कमेटी की दो दौर की बातचीत भी हो चुकी है। पहले कांग्रेस और सपा ने हर सीट पर दो- दो उम्मीदवारों के नाम रखे। सूत्रों का कहना है कि सपा की ओर से कांग्रेस को करीब 20 सीटें दी जा रही हैं, लेकिन इसमें उसकी पहली प्राथमिकता वाली सीटों की संख्या सिर्फ पांच से सात ही हो रही है। अन्य उन सीटों को देने की पहल की गई है, जिन पर कांग्रेस का न तो जनाधार है और न ही संगठनात्मक तैयारी है। ऐसे में कांग्रेस ने इन सीटों को लेने से इन्कार कर दिया है।

इन सीटों में हरी झंडी

सूत्रों का कहना है कि सपा की ओर से कांग्रेस को अमेठी, रायबरेली, कानपुर के अलावा जालौन, बांसगांव, बरेली, सीतापुर, गाजियाबाद, बुलंदशहर आदि सीटें देने की पहल की गई है, लेकिन कांग्रेस इन सीटों को लेने को तैयार नहीं है। कांग्रेस की पहली प्राथमिकता में फर्रुखाबाद, लखीमपुर खीरी आदि सीटें हैं, लेकिन इन सीटों पर सपा ने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इसी तरह सहारनपुर सीट भी सपा नहीं देना चाहती है, जबकि कांग्रेस इस सीट को छोड़ने को तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में दोनों दलों के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है। हालांकि सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि जनाधार के आधार पर सीटों पर बातचीत चल रही है, जल्द ही इस मसले को सुलझा लिया जाएगा। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी का कहना है कि कांग्रेस ने पहली प्राथमिकता वाली सीटों पर लंबे समय से तैयारी की है। ऐसे में उन्हें छोड़ना भविष्य की सियासत के लिहाज से ठीक नहीं होगा। सपा को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भाजपा को हराने के लिए जहां जिसकी मजबूती है, उसे वह सीटें दिया जाए।

सपा को जिद छोड़नी चाहिए

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो राजेंद्र वर्मा कहते हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को रोकने के लिए सपा, कांग्रेस सहित अन्य सभी विपक्षी दलों को आपसी मतभेद भुलाकर एक मंच पर आना चाहिए। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपने सभी सहयोगी दलों को एकजुट रखने की जिम्मेदारी निभानी होगी। क्योंकि वह प्रदेश में सियासी तौर पर बड़े भाई की भूमिका में हैं। हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता महेंद्र मंडल कहते हैं कि सपा की ओर से सामाजिक न्याय की वकालत की जा रही है, लेकिन पीडीए और सामाजिक न्याय की बात करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य और पल्लवी पटेल दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। रालोद पहले ही अलग हो चुका है। ऐसे में सपा को जिद के बजाय उदारता दिखाते हुए गठबंधन धर्म निभाना चाहिए। संविधान बचाने के लिए भाजपा को रोकना जरूरी है।



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