राजधानी लखनऊ में सोमवार को इसरो और रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशंस सेंटर की कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि तकनीकी का प्रभाव हमारे जीवन, देश व प्रदेश के विकास में पड़ता है। इसरो पूरी दुनिया में सबसे सस्ते और विश्वसनीय सैटेलाइट लॉन्च के लिए जाना जाता है। यह वैज्ञानिकों की क्षमता और हमारे काम करने के तरीके को दर्शाता है। 

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उन्होंने कहा कि कृषि, सिंचाई, लोक निर्माण, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, वन, खनन आदि विभागों व आपदा प्रबंधन के लिए स्पेस टेक्नोलाजी अत्यधिक उपयोगी है। मैनुअल क्रॉप सर्वे की अपेक्षा डिजिटल क्राप सर्वे से प्राप्त डाटा बेहतर, सटीक और विश्वसनीय है। योजना भवन में आयोजित कार्यशाला में इसरो के चेयरमैन और अंतरिक्ष विभाग में सचिव डॉ. वी नारायणन ने मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया। 

बारिश व बिजली गिरने से संबंधित सटीक डाटा की तकनीक विकसित करने की अपेक्षा

मुख्य सचिव ने कहा कि आज हर क्षेत्र में स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है। इसके बगैर अपने लक्ष्य और विकास को हासिल कर पाना असंभव है। उत्तर प्रदेश में रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर वर्ष 1982 देश का पहला सेंटर है। उन्होंने कहा कि सैटेलाइट आधारित संचार तकनीक उन क्षेत्रों के लिए मददगार है, जहां आप्टिकल फाइबर की पहुंच नहीं है। उन्होंने चेयरमैन इसरो और वैज्ञानिकों से बारिश व बिजली गिरने से संबंधित सटीक डाटा उपलब्ध कराने की तकनीक विकसित करने की अपेक्षा की।

अब भारत के पास 131 सैटेलाइट

इसरो के चेयरमैन डॉ. वी. नारायणन ने बताया कि वर्ष 2015 में राष्ट्रीय बैठक के दौरान, केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के सचिवों ने उन योजनाओं की पहचान की थी, जिनमें जीपीएस जैसे उपग्रह रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकियों का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1963 में भारत ने पहला रॉकेट लॉन्च किया था, तब से लेकर अब तक 100 से अधिक राकेट भारत ने लांच किये हैं। वर्ष 1975 तक हमारे पास अपने कोई सेटेलाइट नहीं थे, लेकिन अब भारत के पास 131 सैटेलाइट हैं।



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