Special Report Workers Banaras Dhaba area Burj Khalifa not send children to Gulf countries for work

ढाब क्षेत्र के इन बुजुर्गों ने गल्फ कंट्री में बिता दी अपनी जवानी।
– फोटो : अमर उजाला

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दुबई में दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा को बनाने वाले मजदूरों के बच्चे बेहद निचले स्तर की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य की मुकम्मल व्यवस्थाएं तक मयस्सर नहीं हैं। बात हो रहीं है बनारस के ढाब क्षेत्र में रहने वाले सैकड़ों परिवारों की, जिनके घर के अधिकतर लोग आज भी गल्फ कंट्री में काम करते हैं। 

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यहां वे प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन या बढ़ई का काम करते हैं। इस बात की तस्दीक 70 वर्षीय रामकुंवर निषाद कर रहे हैं, जो खुद कतर देश में कारपेंटरी किए, उसके बाद फोरमैन बन काम से रिटायर हो गए और अपने वतन चले आएं। उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं, जिनमें एक ग्राम प्रधान बन गए, नाम है प्रमोद मांझी।

गांव के मुनीब निषाद बताते हैं कि सल्ले नामक एक कंपनी ने 2002 या 2003 में गांव के कुछ लोगों को मुंबई से दुबई जाने का पोसपोर्ट बनवाया था। प्रशिक्षण के साथ ही काम की बारीकियों को भी परखा गया था। ढाब क्षेत्र के दर्जन भर लोग बुर्ज खलीफा में काम करने गए थे। 

वहीं, गांव के कुछ बुजुर्गों ने यह भी बताया कि कंपनी ने एक साल का कॉन्ट्रैक्ट लिया था, काम खत्म होने के बाद सभी लोग गांव लौट आएं। कुछ उम्र के कारण तो कुछ कोरोना काल में खत्म हो गएं। कई सालों बाद बुर्ज खलीफा के बारे में सुना तो अच्छा लगा लेकिन क्या फायदा, हम तो मजदूर ही बने रह गए। हमारे बच्चे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं के लिए झनक रहे हैं। बनारस बदला लेकिन हमारा गांव नहीं।

ढाब क्षेत्र के युवा गल्फ कंट्री के बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब, अमीरात जैसे देशों का सपना देखते हैं। वे भी वहां जाकर अपने पुरखों की तरह मजदूरी करना चाहते हैं लेकिन पहले जैसे हालात नहीं रहे। गांव के कई बुजुर्ग बताते हैं कि समय के साथ काफी कुछ बदल गया है। अब कदर देशों में जाने के लिए बिचाैलियों से गुहार लगानी पड़ती है। अब हम नहीं चाहते कि गांव के युवक दूसरे देशों में जाकर काम करें। वे चाहे जैसे भी हैं हमारे आंखों के सामने रहे।



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