split in Congress even before the first general elections leader rebelled against Nehru

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– फोटो : अमर उजाला

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प्रथम आम चुनाव अभी शुरू भी नहीं हुए थे कि कांग्रेस में फूट पड़ गई। दिग्गज नेता डीपी मिश्र ने नेहरू के खिलाफ विद्रोह कर दिया। राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले मिश्र ने उन पर तानाशाही के आरोप लगाए। साथ ही उनकी नीतियों पर सवाल भी खड़े कर दिए।

अमर उजाला के 26 अगस्त, 1951 में प्रकाशित खबर के अनुसार, कांग्रेस पहले आम चुनाव की तैयारी कर रही थी। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का कांग्रेस पर पूरा दबदबा था। नेहरू की पहचान पार्टी के सर्वमान्य नेता के रूप में थी। उस समय कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में पहचाने जाने वाले डीपी मिश्र ने नेहरू के सामने परेशानी खड़ी कर दी। मिश्र बाद में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। नासिक सम्मेलन में कांग्रेस ने नेहरू के प्रति विश्वास को लेकर प्रस्ताव पारित किया।

मिश्र ने नेहरू पर पार्टी में लोकतंत्र खत्म करने का आरोप लगाया। कहा कि यह प्रस्ताव नेहरू की निगरानी में पारित किया गया है। नेहरू ने तानाशाही तरीके से प्रस्ताव पारित कराया है। उन्होंने सवाल उठाए कि प्रस्ताव की आवश्यकता ही क्या थी। कांग्रेसियों के लिए यह संदेश है कि वह नेहरू का आधिपत्य स्वीकार कर लें। मिश्र ने कहा कि पहले भी नेहरू हिटलरशाही दिखाने की कोशिश कर चुके हैं।

मिश्र ने कहा कि नासिक सम्मेलन में नेहरू ने कांग्रेसियों को साफ-साफ यह संदेश दिया है कि पार्टीजन उनकी तानाशाही को स्वीकार कर लें। नेहरू अपने को पार्टी से भी बड़ा समझने लगे हैं। मिश्र ने आरोप लगाया कि नेहरू चाहते है कि कांग्रेस की कार्यकारिणी भंग कर दी जाए तथा इसमें जिसे वह चाहें ले सकें।  कहा कि वह नेहरू से अपील करना चाहते हैं कि लोगों को मूर्ख न समझें।



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