Story of Kar Sevaks, in their own words

योगीराज हितैषी बाबा
– फोटो : स्वयं

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राम मंदिर आंदोलन में अलीगढ़ की माटी हमेशा उर्वरा रही है। मंदिर के लिए यहां से उठी आवाज देश के कोने-कोने तक पहुंची है। इसलिए 1990 के दशक में चले राम मंदिर आंदोलन में यहां के कारसेवकों का उत्साह देखते ही बनता था। कारसेवक राम मंदिर के लिए अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं रहे। लोधा क्षेत्र के गांव अटलपुर निवासी योगीराज हितैषी बाबा भी मंदिर आंदोलन में कूद पड़े थे।

अयोध्या में सरयू नदी पुल पर चली गोली में वह बाल-बाल बचे थे। उनके सामने तमाम कारसेवकों ने सरयू में छलांग लगा दी थी। योगीराज हितैषी बाबा कहते हैं कि उस समय को याद करते हैं तो सारी तस्वीरें आंखों के सामने नुमाया हो जाती हैं। आइए, सुनते हैं उनसे ही राम मंदिर आंदोलन की कहानी उनकी जुबानी…

मैं 1982 में अलीगढ़ आ गया था। उस समय राम मंदिर के लिए आवाज उठनी शुरू हो गई थी। विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल की अगुवाई में मंदिर आंदोलन शुरू होने लगा था। उन्होंने संत समाज का आह्वान किया। मुझे लगा कि प्रभु राम के मंदिर के लिए मुझे भी योगदान देना चाहिए। संत का काम सिर्फ त्याग और साधना नहीं, रामकाज़ भी है। इसलिए 1990 में कुछ संतों के साथ मैं भी कारसेवा के लिए अयोध्या चल पड़ा। ट्रेन से कानपुर पहुंचा तो पुलिस का सख्त पहरा था। अयोध्या की ओर जाने वाली ट्रेनों में चेकिंग थी, इसलिए वहां से सीधे प्रयागराज (उस समय इलाहाबाद) पहुंच गया। प्रयागराज से अयोध्या जाने वाली बसें रोक दी गई थीं। कोई साधन नहीं था। इसलिए हम लोग छोटे-छोटे वाहनों से अयोध्या की ओर चल पड़े। तमाम जगहों पर ट्रैक्टर और मोटरसाइकिल वालों से मदद लेकर अयोध्या की ओर बढ़ते रहे। कुछ जगहों पर पैदल ही चलना पड़ा।



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