Supporters of parties get energy from slogans in elections

लोकसभा चुनाव
– फोटो : अमर उजाला

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चल गया तो चांद तक, नहीं चला तो शाम तक…। जैसे ही कोई इसे दोहराता है, सामने वाला समझ जाता है कि बात चीन के उत्पादों की हो रही है। बात को गोल-गोल न घुमाते हुए हम आते हैं असल मुद्दे पर। कुछ ऐसा ही हाल होता है चुनावी नारों का। चल गए तो बुलंदी तक ले गए। वोटों की झड़ी लगा दी। नहीं चले तो? मतलब साफ है जनता ने नकार दिया।

नारों का अपना मनोविज्ञान होता है। अपनी एनर्जी होती है। केजीएमयू की मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. पूजा माहौर कहती हैं, नारे का अपना एक समाजशास्त्र होता है। ये एक उत्प्रेरक का काम करते हैं। इससे संबंधित दल के समर्थकों को अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है और वे एकजुट होते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजेंद्र वर्मा भी कहते हैं कि नारे एकजुटता का प्रतीक होते हैं। कोई भी कठिन कार्य को नारे के जरिए लोगों की ताकत को एकजुट कर सफलता का रास्ता बनाया जा सकता है। डॉ. पूजा, प्रो. राजेंद्र जिस एनर्जी की बात कर रहे हैं उसे सियासी दल बहुत गहरे से समझते हैं। तभी तो चुनावी रणभेरी बजते ही सियासी दलों ने नए-नए नारों के जरिये कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में जोश भरना शुरू कर दिया है। भाजपा ने 2014 और 2019 की तरह ही पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर नारे तैयार किए हैं। तो वहीं विपक्षी दल अपने-अपने तरीके से पिछड़े एवं दलित वर्ग को नारे के जरिए लामबंद करने में जुटे हैं।

कब-कब कौन से नारे रहे प्रभावी

2019:  भाजपा ने नारे दिए- मोदी है तो मुमकिन है। अबकी बार, फिर मोदी सरकार। ये नारे कारगर साबित हुए। भाजपा को यूपी में 64 सीटें मिलीं।

कांग्रेस ने नारा दिया-मोदी हटाओ, देश बचाओ। अब होगा न्याय…। पर, ये नारे आमजन के मनोविज्ञान को प्रभावित नहीं कर सके और बेअसर साबित हुए। नतीजा- कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली। वहीं, सपा और बसपा गठबंधन ने 85-15 का नारा बुलंद किया। गठबंधन 15 सीटें जीतने में कामयाब रहा।

2014 : लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया था- हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की। जनता कहेगी दिल से, कांग्रेस फिर से। कट्टर सोच नहीं, युवा जोश…। ये नारे आमजन का भरोसा नहीं जीत सके।

भाजपा ने नारे दिए-अबकी बार मोदी सरकार। अच्छे दिन आने वाले हैं। सबका साथ, सबका विकास। हर-हर मोदी, घर-घर मोदी। मोदी की ब्रांड वैल्यू ने नारों की एनर्जी को और बढ़ा दिया। सपा ने नारे दिए- नई सपा है, नई हवा है और आ रहे हैं अखिलेश। इस चुनाव में भाजपा को 71, अपना दल को दो, सपा को पांच, कांग्रेस को दो सीटें मिलीं।



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