सब हेड – बुंदेलखंड में प्रचलित हैं सुआटा खेलने की परंपरा

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संवाद न्यूज एजेंसी

झांसी। बुंदेलखंड में शारदीय नवरात्र पर सुआटा (नौरता) खेले जाने की विशेष परंपरा है। भोर के समय बालिकाएं बुंदेली गीत गाते हुए आकर्षक रंगोलियां बनाती हैं। यह लोक परंपरा आज भी शहरों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में खूब प्रचलित है।

सुआटा खेलने का उत्साह नवरात्र के एक-दो पहले से दिखने लगता है। ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहर के बड़ागांव गेट, दतिया गेट बाहर, उनाव गेट बाहर, सीपरी, रक्सा सहित कई आसपास के क्षेत्रों में बालिकाएं रात्रि में गोबर से चौक लिपती हैं। दीवार पर सुआटा राक्षस का प्रतीक चित्र अथवा प्रतिमा बनाती है। इसके बाद, भोर होते ही सूरजमल के घुल्ला छूटे.., चंद्रामल के घुल्ला छूटे.. बुंदेली गीत गाते हुए चौक पर प्राकृतिक रंगों से आकर्षक रंगोलियां बनाती है। नवमी पर गौर की पूजा होती है। सुआटा के साथ ही झिंझिया व टेसू आदि के आयोजन भी होते हैं। बुंदेली लोक संस्कृति के वरिष्ठ साहित्यकार पन्नालाल असर के अनुसार सुआटा शारदीय नवरात्र के नौ दिन खेला जाता है। बालिकाएं बुंदेली गीतों को गाते हुए सूर्योंदय के समय आकर्षक रंगोलियां बनाती है। बुंदेलखंड में यह लोक परंपरा काफी प्राचीन है। बालक टेसू खेलते हैं।



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