{“_id”:”67b0c10e817ff0ade406b792″,”slug”:”temperatures-like-june-are-seen-in-february-crops-turn-yellow-orai-news-c-224-1-ori1005-125889-2025-02-15″,”type”:”story”,”status”:”publish”,”title_hn”:”Jalaun News: फरवरी में दिख रहा जून जैसा तापमान, फसल पड़ी पीली”,”category”:{“title”:”City & states”,”title_hn”:”शहर और राज्य”,”slug”:”city-and-states”}}
अधिक तापमान होने से पीली पड़ी गेहूं की फसल। – फोटो : संवाद
मुहम्मदाबाद। इस बार तापमान में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। जनवरी और फरवरी के महीने में जब ठंड का असर अच्छा होना चाहिए। तब दिन में तेज धूप व रात में हल्की ठंड हो रही है। इससे गेहूं के पौधों में सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। मौसम में लगातार बढ़ रहे तामपान की वजह से गेहूं की फसल सूखने लगी है। इसके साथ ही पौधा भी छोटा हो रहा है।
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जिले में लगातार तापमान बढ़ता जा रहा है। इससे गेहूं की फसल पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। कृषि वैज्ञानिक के अनुसार, गेहूं के लिए दिन का तापमान 24 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। जबकि रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम रहना जरूरी है। अगर तापमान इससे ऊपर नीचे चला जाता है। तो सबसे ज्यादा गेहूं की फसल पर इसका असर पड़ता है।
गेहूं की फसल तीन पानी लगाने के बाद तैयार हो जाती है। लेकिन इस बार तापमान कम न होने से पौधे में सिकुड़न आ गई है। जबकि जमीन में दरारें पड़ने लगी है। इससे किसान चिंतित हैं। जनवरी से ही तापमान 25 डिग्री सेल्सियस पहुंचने लगा था। वहीं, रात के समय तापमान 13 डिग्री तक पहुंच गया था। इससे फसल पर असर पड़ने लगा था। लोगों को उम्मीद थी कि फरवरी माह में तापमान कम हो जाएगा। लेकिन तापमान में बराबर बढ़ोतरी हो रही है। किसानों का कहना है कि अगर ऐसा ही बना रहा तो आने समय में वह फसल की लागत भी नहीं निकाल पाएंगे। वैसे ही वह हरी मटर की फसल में घाटा खा चुके हैं।
फसल हो रही खराब, अब लागत निकालना भी लग रहा मुश्किल
किसान रहूफ खान ने बताया कि जनवरी-फरवरी में सर्दी का असर रहता था। इससे तीन पानी में ही फसल तैयार हो जाती थी। लेकिन फरवरी माह में ही जून जैसी हवाएं चलने लगी हैं। दिन में तेज धूप पड़ने से फसल पीली पड़ने लगी है। उम्मीद थी कि हरी मटर के बाद गेहूं बोने से फायदा होगा। लेकिन अब लागत निकालना भी मुश्किल लग रहा है। किसान लखन ने बताया कि इस बार तापमान 35 से हो जाता है। जो गेहूं की फसल के लिए नुकसान देय है। तीन पानी की जगह पांच पानी दे चुके हैं। फिर भी फसल में सुधार नहीं हो रहा है। साथ ही जमीन में दरारें पड़ने लगी है।