उरई। मेडिकल कॉलेज में मनोरोगियों की टेंशन कम होने के बजाए बढ़ रही हैं। क्योंकि डॉक्टर सरकारी पर्चे पर बाहर की दवाएं लिख रहे हैं। यह दवाएं एक हजार रुपये से अधिक की पहुंच रही हैं। सरकारी अस्पताल में भी मरीजों को इलाज के नाम पर भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। डॉक्टर की माने तो वो जो दवाएं लिख रहे हैं, वह कॉलेज में नहीं है, जबकि प्राचार्य का कहना है कि जेनेरिक दवाएं लिखी जानी चाहिए।
गुरुवार को अमर उजाला की टीम ने पड़ताल की तो पता चला कि एक भी पर्चे में अंदर की दवा नहीं लिखी जा रही है। टीम का एक सदस्य पर्चा लेकर डॉक्टर के पास गया और बताया कि उन्हें नींद नहीं आ रही। रात को भयानक सपने आते हैं तो डॉक्टर ने बताया कि करीब 15 दिन की दवाई खानी पड़ेगी। दवाई बाहर से लेनी पड़ेगी। दवाई लिखवाने के बाद पर्चा लेकर दवा वितरण कांउटर पर पहुंचे तो पता चला कि जो दवाई पर्चे में लिखी हैं वह वहां नहीं हैं। इसके बाद डॉक्टर से जानकारी की तो उन्होंने बताया कि प्रबंधन द्वारा कोई भी दवाई उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। इससे बाहर की दवाई लिखनी पड़ रहीं हैं।
बता दें कि मनोरोग डॉक्टर के पास प्रतिदिन ल्रभग सौ से अधिक मरीज पहुंचते हैं। हर मरीज को डॉक्टर करीब एक हजार से अधिक की दवा लिखते हैं। लोगों का कहना है कि दवाओं में कमीशन सेट होता है, जो आसानी से पहुंच जाता है। साथ ही यह दवाई शहर के अन्य किसी मेडिकल स्टोर में भी नहीं मिलती हैं, उसके लिए एक ही मेडिकल स्टोर का चयन किया जाता है। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ.अरविंद त्रिवेदी का कहना है कि मेडिकल कॉलेज में जेनेरिक दवाएं उपलब्ध हैं। डॉक्टर अपनी मर्जी से बाहर की दवाएं लिख रहे हैं। कई बार इसके लिए उन्हें रोका भी जा चुका है।