
पर्वत सिंह बादल ✍️ 🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿( धर्म ) तुलसी और वृंदा की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख कथा है, जो पतिव्रता वृंदा (एक असुर की पत्नी) के भगवान विष्णु द्वारा छल से सतीत्व भंग करने के बाद उनके श्राप से संबंधित है, जिसके कारण तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है।
कथा का सारांश
जलंधर की पत्नी वृंदा: वृंदा एक अत्यंत पतिव्रता और धार्मिक स्त्री थी, जिसके सतीत्व के कारण उसके पति जलंधर को अमरता का वरदान प्राप्त था।
भगवान विष्णु का छल: देवताओं ने जलंधर के आतंक को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु ने छल से जलंधर का रूप धरकर वृंदा के पास गए और उनका सतीत्व भंग कर दिया।
** वृंदा का श्राप:** जब वृंदा को पता चला कि उसका सतीत्व भंग हुआ है और विष्णु ने यह छल किया है, तो वह क्रोधित हो गईं और उन्होंने भगवान विष्णु को “पत्थर बनने” का श्राप दे दिया, जिसके कारण विष्णु शालिग्राम पत्थर में बदल गए।
वृंदा का आत्मदाह: वृंदा ने अपना जीवन त्याग दिया और उसी स्थान पर एक पौधा उत्पन्न हुआ, जिसे “तुलसी” नाम दिया गया।
भगवान विष्णु का वरदान: बाद में, भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया कि वह तुलसी के रूप में सदा उनके साथ रहेंगी और तुलसी के बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाएगी।
तुलसी विवाह: इस घटना की याद में, हर साल कार्तिक महीने की देवउठनी एकादशी को तुलसी का विवाह शालिग्राम स्वरूप में भगवान विष्णु के साथ किया जाता है।
कथा का महत्व
पवित्रता और भक्ति: यह कथा पतिव्रता धर्म और भक्ति के महत्व को दर्शाती है।
प्रतीकवाद: तुलसी का पौधा पवित्रता, भक्ति और त्याग का प्रतीक है।
शालिग्राम और तुलसी का संबंध: शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है, जिससे यह विवाह “मानवीय और दैवीय प्रेम का प्रतीक” है।
पुनर्जन्म: वृंदा का तुलसी के रूप में पुनर्जन्म भगवान विष्णु और लक्ष्मी की लीला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। तुलसी और वृंदा की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रसिद्ध कथा है, जो प्रेम, पवित्रता और भगवान विष्णु की लीला से जुड़ी है।
*वृंदा की तपस्या और वरदान:*
वृंदा एक पवित्र और श्रद्धालु कन्या थी, जिसने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि वह उसके पति के रूप में अवतरित होंगे।
*वृंदा और जलंधर का विवाह:*
वृंदा की तपस्या के फलस्वरूप, वह जलंधर की पत्नी बनी। जलंधर एक शक्तिशाली राक्षस राजा था, जो अपनी पत्नी वृंदा के प्रेम और पवित्रता के कारण अजेय था।
*जलंधर का वध:*
जलंधर के अत्याचारों से परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से उसकी मदद करने का अनुरोध किया। भगवान विष्णु ने जलंधर का वध करने का निर्णय लिया, लेकिन वृंदा की पवित्रता और पतिव्रता धर्म के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था। तब भगवान विष्णु ने वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करने के लिए एक युक्ति अपनाई।
*वृंदा की पवित्रता का भंग:*
भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने प्रकट हुए और उसके पतिव्रता धर्म को भंग कर दिया। जब वृंदा को पता चला कि यह भगवान विष्णु की माया थी, तो उसने भगवान विष्णु को शाप दिया कि वह पत्थर बन जाएंगे।
*तुलसी के रूप में अवतार:*
वृंदा की मृत्यु के बाद, उसकी आत्मा तुलसी के पौधे के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई। भगवान विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और कहा कि वह तुलसी के साथ शालिग्राम के रूप में पूजा पाएंगे।
*तुलसी विवाह:*
इस कथा के कारण तुलसी का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु के रूप) के साथ किया जाता है, जो एक पवित्र और मांगलिक अनुष्ठान माना जाता है।
*कथा का महत्व:*
– *पतिव्रता धर्म*: वृंदा की कथा पतिव्रता धर्म और पवित्रता की महत्ता को दर्शाती है।
– *भगवान की लीला*: यह कथा भगवान विष्णु की लीला और उनकी युक्तियों को प्रकट करती है।
– *तुलसी की महत्ता*: तुलसी को पवित्र और पूजनीय माना जाता है, और इसका उपयोग पूजा-पाठ में किया जाता है।
(कथा विवरण विस्तार से)
यह कथा प्रेम, पवित्रता और भगवान की भक्ति का एक सुंदर उदाहरण है।वृंदा और जलंधर की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार तुलसी और शालिग्राम विवाह की उत्पत्ति से संबंधित है, जो पतिव्रता धर्म की शक्ति, भगवान विष्णु की लीला और तुलसी की पवित्रता को दर्शाती है। वृंदा, जो भगवान विष्णु की भक्त थी, जलंधर नामक राक्षस की पत्नी बनी। जब वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करने के बाद वृंदा ने विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया, तो विष्णु पत्थर (शालिग्राम) के रूप में अवतरित हुए और वृंदा तुलसी के पौधे के रूप में अवतरित हुईं, जिसे बाद में विष्णु से विवाह हुआ।
कथा का विवरण
वृंदा की तपस्या और विवाह: एक भक्त कन्या वृंदा ने भगवान विष्णु को पाने के लिए कठोर तपस्या की, लेकिन उसने विवाह राक्षस जलंधर से किया, जो उसकी पवित्रता के कारण बहुत शक्तिशाली बन गया।
जलंधर का वध: जलंधर के अत्याचारों से परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी। जलंधर को हराने के लिए, विष्णु को वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करने की आवश्यकता पड़ी।
वृंदा का शाप: भगवान विष्णु ने स्वयं जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने प्रकट हुए। जब वृंदा को छल का पता चला, तो वह क्रोधित हो गई और विष्णु को पत्थर बनने का शाप दिया। इसके बाद, वृंदा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।
तुलसी के रूप में अवतार: वृंदा के आत्मदाह के स्थान पर तुलसी का पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने शालिग्राम (पत्थर) के रूप में वृंदा को वरदान दिया कि वह तुलसी के रूप में उनके साथ रहेंगी।
तुलसी विवाह: इसी कारण से, हर साल तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ किया जाता है, जिसे एक मांगलिक अनुष्ठान माना जाता है।
कथा का महत्व
पतिव्रता धर्म: यह कथा पतिव्रता धर्म और पवित्रता की महत्ता को दर्शाती है।
भगवान की लीला: यह कथा भगवान विष्णु की लीला और युक्तियों को प्रकट करती है।
तुलसी की महत्ता: तुलसी को एक पवित्र और पूजनीय पौधे के रूप में स्थापित किया गया है, जिसका उपयोग पूजा-पाठ में किया जाता है।
