The tiger made its 19th kill and still free.

प्रतीकात्मक तस्वीर।
– फोटो : अमर उजाला

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राजधानी लखनऊ के रहमानखेड़ा में बाघ ने मंगलवार रात फिर से एक पड़वे का शिकार किया। बाघ का यह 19वां शिकार है, जिस वन विभाग ने बाघ को फांसने के लिए जंगल क्षेत्र में बांध को परोस रखा है। अब तक बाघ ने जितने शिकार किए हैं, उनमें ज्यादातर वन विभाग की ओर से बांधे गए मवेशी ही हैं। ऐसे शिकार को मारने में बाघ को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती।

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दो महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वन विभाग बाघ को पकड़ने में नाकाम है। अब इस रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई), देहरादून से विशेषज्ञ शिखा बिष्ट को बुलाया गया है। उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर व बाराबंकी जिलों की टीमें बाघ की तलाश में जुटी हुई हैं।

63 दिनों रहमानखेड़ा में घूम रहे बाघ ने बागवानी संस्थान के जोन एक के बेल वाले ब्लॉक में ट्रैप के लिए बांधे गए पड़वे को मंगलवार रात निवाला बनाया। पड़वे के शरीर से कुछ मांस खाकर निकल गया। पगचिह्नों से उसके भ्रमण वाले इलाके को चिह्नित किया जा रहा है।

बेल वाले ब्लॉक में बना नया मचान

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ रेनू सिंह, डीएफओ बाराबंकी आकाशदीप बधावन के साथ डीएफओ सितांशु पांडेय मौके पर पहुंचे। बताया कि बेल वाले ब्लॉक में एक नया मचान बनाया गया है। पड़वे के शिकार वाली जगह के आसपास तीन तरफ से जाल बांधकर बाघ को पकड़ने के लिए दो जगह पिंजरे भी लगाए गए हैं। मचान पर विशेषज्ञों को तैनात किया गया है।

बाघिन के आवाज की रिकॉर्डिंग मंगाई

वन विभाग ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के विशेषज्ञों से भी संपर्क साधा है। बाघ को आकर्षित करने के लिए बाघिन की आवाज की रिकॉर्डिंग मंगाई जा रही है।

63 दिनों में 63 लाख खर्च, फिर भी बाघ पकड़ से दूर

टाइगर ऑपरेशन में वन विभाग ने अब तक 63 लाख रुपये से अधिक खर्च किए हैं। हथिनी डायना और सुलोचना पर रोजाना दस हजार रुपये से अधिक का खर्च आ रहा है। हालांकि इतने खर्च के बाद भी हाथ खाली हैं।



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