
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में शामिल थिक नी भले ही दुनिया में खतरे में पड़ गई हो, लेकिन चंबल नदी में इनकी संख्या बढ़ने की आस जगी है। थिक नी ने मई की शुरूआत में एक घोंसला बना कर 2 अंडे दिए थे। एक अंडे से चूजा भी निकल आया है।

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चंबल किनारे दिए अंडे।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
बाह के रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि जनवरी में कराए गए सर्वे में 48 थिक नी मिली थी। अमूमन सर्दी के मौसम में पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम से चंबल में दस्तक देने वाली थिक नी अप्रैल में वापसी की उड़ान भर लेती थीं। पर, इस बार प्रजनन सीजन (मई-जून) में इनकी मौजूदगी उत्साहजनक है। उम्मीद है कि इंडियन स्कीमर की तरह थिक नी भी चंबल को अपना स्थाई ठिकाना बनाएगी। इसका वैज्ञानिक नाम बुरहिनस इंडिकस है। स्थानीय लोग भूरी चिड़िया के नाम से पुकारते हैं।

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भूरी चिड़िया के रूप में भी जानी जाती है।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
दिन में नदी किनारे शांत रहती है रात्रिचर चिड़िया
थिक नी रात्रिचर चिड़िया है। दिन में नदी किनारे शांत बैठी रहती है। इनके पैर लंबे होते हैं, पंजा पीले रंग का होता है। शरीर का ऊपरी हिस्सा भूरे रंग का धारी और धब्बेदार होता है। निचले हिस्से का रंग सफेद होता है। छोटी चोंच का सिरा काला होता है। नर-मादा एक जैसे होते हैं। इनका आकार 35-40 सेमी, वजन 750 ग्राम होता है। नदी के कीड़े-मकोड़े इनका भोजन होते हैं।

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ग्रेट थिक नी।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
ग्रेट थिक नी से भी है गुलजार
चंबल सेंक्चुअरी की बाह रेंज में ग्रेट थिक नी की भी मौजूदगी है। ग्रेट थिक नी का वैज्ञानिक नाम एसाकस रिकरविरोस्ट्रिस है। इसका रूप रंग थिक नी जैसा ही होता है। आकार कुछ बड़ा होता है। ये भी आईयूसीएन की रेड लिस्ट में शामिल हैं।

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चंबल नदी किनारे बनाया ठिकाना।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
ऐसे पहुंचें चंबल
चंबल सेंक्चुअरी का नंदगवां घाट आगरा से 85 और इटावा से 40 किमी की दूरी पर है। सैलानी यहां बस या टैक्सी से पहुंच सकते हैं। नंदगवां के इंटरप्रिटेशन सेंटर से देसी सैलानी 50 रुपये तथा विदेशी 600 रुपये का शुल्क देकर ईको टूरिज्म सेंटर को देख सकते हैं।
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