
– फोटो : sanjay gandhi
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बात सन 1976 की है। उस वक्त देश में इमरजेंसी और नसबंदी अभियान से कांग्रेस की खूब किरकिरी हो रही थी। सियासी जमीन खिसक रही थी। इस सब के लिए गांधी परिवार के लाडले स्व. संजय गांधी को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार माना जा रहा था। वह इन आरोपों के डैमेज कंट्रोल में लगे थे, तभी अचानक उनकी एक पहल ने अमेठी को सुर्खियों में ला दिया। संजय गांधी और उनकी टीम ने अमेठी के खेरौना सहित कई गांवों में श्रमदान के जरिए गांधीगिरी शुरू की। जानकार बताते हैं कि संजय गांधी ने खेरौना, रामनगर, विरायनपुर व सरवनपुर गांव में श्रमदान कर सड़कें बनाईं। इसके लिए दिल्ली तक से फावड़े, छटवे मंगाए गए थे।
संजय गांधी ने खुद फावड़ा चला कर मिट्टी की पटाई कराई थी। कई प्रदेशों से कांग्रेसियों ने इसमें हिस्सा लिया था। स्थानीय लोगों ने भी बढ़चढ़ कर शिरकत की थी। श्रमदान में शामिल लोगों के खाने-पीने की मौके पर ही व्यवस्था थी। तकरीबन एक महीने तक श्रमदान के जरिए सड़कें बनाईं गईं। संजय गांधी का यह कदम काफी सराहा गया। इस श्रमदान के पूरे विश्व में चर्चे हुए। लेकिन इस सब के बाद भी संजय गांधी की ये गांधीगिरी काम नहीं आई। उन्हें अपने पहले ही सियासी सफर में मात खानी पड़ी। 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता दल के रविंद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को हरा दिया था।
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1977 में चार प्रत्याशी थे मैदान में
संजय गांधी ने जब पहली बार अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा तो उनके मुकाबले में जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह मैदान में थे। रविंद्र प्रताप सिंह को एक लाख 76 हजार 410 वोट मिले थे, वहीं संजय गांधी को एक लाख 566 वोट मिले थे। संजय गांधी 75 हजार 844 वोट से चुनाव हार गए थे। अब्दुल वाहिद व बद्री नारायण ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमाई थी।