विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को वैसे तो विपक्ष मुस्लिम वोटों को निशाना बनाने की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की साजिश बता रहा है। आरोपों को नकारती भाजपा को पहले तो इस आरोप से खुशी और संतोष मिल रहा था लेकिन अब पार्टी पदाधिकारियों को डर लग रहा है कि कहीं लोकसभा चुनाव के 400 पार के नारे की तरह झटका न दे दे। ऐसा इसलिए है क्योंकि पार्टी के पदाधिकारियों को पहले सिर्फ विपरीत विचारधारा वाले वोटों के कटने का अनुमान था। हालांकि अब ताजा आंकड़े खुद नुकसान पहुंचने के संकेत दे रहे हैं।

दरअसल, लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने अबकी बार 400 पार का नारा दिया, तो पार्टी का ही वोटबैंक निश्चिंत होकर बैठ गया। नतीजा यह हुआ कि जब परिणाम आए तो पार्टी 300 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी। इस बार भी पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि एसआईआर के दाैरान कागज न दिखाने की बात करने वाले विरोधियों के बड़ी संख्या में वोट कट जाएंगे। हालांकि अब आंकड़ों ने उनकी नींद उड़ा दी है। 

पिछले तीन दिन में मुख्यमंत्री ने मुरादाबाद, शामली, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, आजमगढ़, बिजनाैर जैसे जिलों के विधानसभाक्षेत्रों का उदाहरण देकर यह बताया है कि सबकुछ ठीक नहीं है। आगरा में भी उन्होंने सीधे नाम लिए बिना कहा कि शहरी क्षेत्रों में मतदाता की उदासीनता और कार्यकर्ताओं का ढुलमुल रवैया अपने लिए ही भविष्य में मुश्किल खड़ी कर सकता है। शहरी क्षेत्रों में बेहतर पकड़ रखने वाली भाजपा इसी वजह से अब अपने संभावित नुकसान को पहले ही रोकने के लिए पुनरीक्षण के काम में कूद पड़ी है। अब देखना यह है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को यह कदमताल क्या परिणाम देती है।



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