एकादशी की दिव्य और पुण्यदायिनी घड़ी पर आज सुबह नौ बजे संत प्रेमानंद महाराज ने राधा कुंड स्थित छटीकरा तिराहे से गिर्राज परिक्रमा आरंभ की। जैसे ही महाराज ने गिर्राज धरणी की ओर पहला कदम बढ़ाया, वातावरण में भक्ति का ऐसा आलोक फैला कि मानो संपूर्ण ब्रजभूमि एकाग्रता में डूब गई हो। एकादशी के व्रत और साधना के इस सुयोग्य अवसर पर सैकड़ों भक्तजन महाराज के साथ श्रद्धा के दीप जलाए आगे बढ़ते रहे।

राधे राधे की गूंज, गिर्राज सरकार की जयध्वनि और संत के शांत तेज से युक्त मुखमंडल के साथ यात्रा की शुरुआत ने मार्ग को तीर्थ बना दिया। महिलाएं, वृद्ध, युवा और बालक सभी भाव विभोर होकर साथ चल पड़े। पुलिस फोर्स सुरक्षा हेतु तैनात रहा, परन्तु श्रद्धा के अनुशासन ने व्यवस्था को सहज बनाए रखा।

भक्तों का कहना था कि एकादशी पर संत के द्वारा गिर्राज की परिक्रमा शुरू करना आध्यात्मिक साधना का उच्चतम स्वरूप है, जहां व्रत, भक्ति और विनम्रता तीनों का संगम दिखाई दिया। बिना किसी औपचारिक घोषणा के निकली इस परिक्रमा ने जनसैलाब को ऐसा आकर्षित किया कि मार्ग के प्रत्येक मोड़ पर स्वागत की भावना स्वतः उमड़ती रही।

गिर्राज की परिक्रमा में चलते हुए महाराज ने भक्तों को केवल संकीर्तन और मौन साक्षात्कार से ही संदेश दिया कि एकादशी में शरीर से अधिक मन की साधना महत्त्वपूर्ण है। परिक्रमा फिलहाल जारी है और भक्तों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।

 



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