उत्तर प्रदेश में मरीजों के दर्द की दवा करने वाले चिकित्साधिकारी सामुदायिक स्वास्थ्य (एमओसीएच) खुद ही दर्द से बेहाल हैं। दरअसल, ये चिकित्साधिकारी आयुष विभाग और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के बीच पिस रहे हैं। वे जिस पद पर भर्ती होते हैं और करीब 30 साल सेवा देते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। ऐसे में ये चिकित्साधिकारी काफी समय से खुद को किसी एक विभाग के अधीन करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इनकी सुनवाई नहीं हो रही है।
प्रदेश में एमओसीएच के लगभग 1,678 पद हैं। इनमें करीब 600 पदों पर चिकित्साधिकारी कार्यरत हैं। आयुर्वेद विधा के इन चिकित्साधिकारियों की नियुक्ति आयुष विभाग के अधीन होती है। आयुष विभाग नियुक्ति प्रस्ताव भेजता है और उप्र लोक सेवा आयोग से चयन होता है। चयन के बाद आयुष विभाग इन चिकित्साधिकारियों को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधीन भेज देता है। मुख्य चिकित्साधिकारी इन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर तैनाती देते हैं। प्रत्येक पीएचसी पर एलोपैथ और आयुर्वेद के एक-एक चिकित्साधिकारी तैनात होते हैं।
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बाद में एलोपैथ वाले चिकित्साधिकारी अपने विभाग में प्रोन्नति पाते हुए निदेशक और महानिदेशक तक पहुंच जाते हैं। जबकि आयुष विभाग के अधीन एमओसीएच पद पर भर्ती होने वाले ये चिकित्साधिकारी, इसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। कई चिकित्साधिकारी 30 से 35 वर्ष की सेवा बाद के भी प्रोन्नति नहीं पा सके हैं। इससे इन चिकित्साधिकारियों में काफी आक्रोश है। नतीजतन, अब भर्ती को लेकर भी उत्साह खत्म हो रहा है।
दिखवा रहे हैं यह प्रकरण
प्रमुख सचिव आयुष रंजन कुमार का कहना है कि प्रकरण संज्ञान में है। दिखवा रहे हैं। अभी तक क्यों नहीं हो पाया, इस पर भी विचार किया जा रहा है। कोई न कोई रास्ता निकाला जाएगा ताकि सभी चिकित्साधिकारियों को समय-समय पर पदोन्नति का लाभ मिल सके।
वीआईपी से लेकर इमरजेंसी ड्यूटी तक
मुख्य चिकित्साधिकारी के अधीन कार्यरत एमओसीएच मरीजों के उपचार के साथ ही तमाम अन्य कार्य भी करते हैं। इन्हें वीआईपी से लेकर इमरजेंसी ड्यूटी तक की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। सीएमओ कार्यालय के अधीन आने वाले अन्य विभागीय जिम्मेदारी भी दी जाती है। पर, जब प्रोन्नति की बारी आती है तो इन्हें आयुष विभाग के जिम्मे छोड़ दिया जाता है। उधर, आयुष विभाग इन चिकित्साधिकारियों को लेकर गंभीर नहीं है।
