नींबू उत्पादक किसानों के लिए चिंता बढ़ाने वाली खबर है। क्षेत्र में नींबू के बागों में सिट्रस कैंकर रोग तेजी से फैल रहा है, जिससे फल की गुणवत्ता के साथ उत्पादन पर भी प्रतिकूल असर पड़ने लगा है।

कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) बिचपुरी के उद्यान विशेषज्ञ अनुपम दुबे ने किसानों को इस जीवाणु जनित रोग से बचाव के लिए विशेष सावधानियां बरतने की सलाह दी है। दुबे के अनुसार, रोग प्रबंधन की शुरुआत बगीचों में संक्रमित हिस्सों की पहचान से होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि सबसे पहले रोगग्रस्त पत्तियों, टहनियों और फलों को काटकर बगीचों से दूर नष्ट करना अनिवार्य है। इससे बीमारी के प्रसार की श्रृंखला टूटती है और स्वस्थ पौधे सुरक्षित रहते हैं।

रोग नियंत्रण के लिए दुबे ने बताया कि कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (50% डब्लूपी) 45 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लीन दो ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना प्रभावी रहता है। छिड़काव के दौरान पत्तियों और फलों की ऊपरी व निचली सतह पर समान रूप से दवा लगना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि फल पकने के दौरान रोग फैलने की आशंका अधिक होती है, इसलिए इस अवधि में छिड़काव अवश्य करना चाहिए। कॉपर आधारित दवा एक सुरक्षात्मक कवकनाशी की तरह काम करती है और संक्रमण को बढ़ने से रोकती है।

ये है सिट्रस कैंकर की पहचान

दुबे ने बताया कि नींबू के पौधों पर छोटे, उभरे हुए, भूरे या कॉर्क जैसे धब्बे सिट्रस कैंकर के मुख्य लक्षण हैं। इन धब्बों के चारों ओर हल्का पीला घेरा दिखाई देता है। शुरुआत में ये पानी जैसे प्रतीत होते हैं और बाद में सख्त व खुरदुरे हो जाते हैं। गंभीर अवस्था में पत्तियां झड़ जाती हैं, फल विकृत हो जाते हैं और उत्पादन प्रभावित होता है।

 



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