प्रदेश में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में नोटा का विकल्प लागू करने और बैलेट पेपर पर चुनाव चिह्न के साथ प्रत्याशियों का नाम अनिवार्य रूप से लिखे जाने के आग्रह वाली जनहित याचिका हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दाखिल की गई है। याचिका सुनवाई के लिए शुक्रवार को न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध है।

अधिवक्ता सुनील कुमार मौर्य ने याचिका में कहा है कि वर्तमान व्यवस्था में, पंचायत चुनावों के बैलेट पेपर पर सिर्फ प्रत्याशियों को आवंटित चुनाव चिह्न होता है, प्रत्याशी का नाम नहीं। जिससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। वहीं नोटा का विकल्प न होना मतदाताओं के कानूनी अधिकारों का उल्लंघन है।

याची ने शहरी और ग्रामीण मतदाताओं में भेदभाव का आरोप लगाकर कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग शहरी निकाय के चुनावों में तो नोटा का विकल्प देता है, लेकिन ग्रामीण (पंचायत) मतदाताओं को इससे वंचित रखा है। यह संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन है। याची ने कोर्ट से, राज्य निर्वाचन आयोग को आगामी पंचायत चुनावों में बैलेट पेपर पर प्रत्याशी का नाम और नोटा का कॉलम शामिल करने के निर्देश देने का आग्रह किया है।

आयोग का तर्क : 60 करोड़ मतपत्र छापना मुश्किल

याची अधिवक्ता ने बताया कि याचिका में एक आरटीआई के जवाब का हवाला दिया गया है। इसमें 20 अगस्त 2025 को राज्य निर्वाचन आयोग ने बताया था कि पंचायत चुनाव में लगभग 55-60 करोड़ मतपत्र छपते हैं और समय कम होता है, इसलिए नोटा और नाम छापना संभव नहीं है। याची ने इस तर्क को असांविधानिक बताते हुए चुनौती दी है और कहा है कि प्रशासनिक कठिनाई को आधार बनाकर मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।



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