
ओम प्रकाश राजभर व अखिलेश यादव। (फाइल फोटो)
– फोटो : amar ujala
विस्तार
लोकसभा चुनाव में सपा की पटरी पर ”पीडीए” यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों की गाड़ी कैसे दौड़ेगी। साथ जीने-मरने की कसम खाने वाले अपने सहयोगियों को ही समाजवादी नेतृत्व सहेज कर नहीं रख पा रहा है। उच्च सदन में भागीदारी के सवाल पर चुनाव पूर्व हुए गठबंधन में दरार पड़नी शुरू हुई, जो ओमप्रकाश राजभर के एनडीए में जाने से और चौड़ी हो गई।
हालात बताते हैं कि समय रहते बेहतर रणनीति नहीं अपनाई गई तो ये चुनौतियां कम होने वाली नहीं हैं। विधानसभा चुनाव से पहले महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा योगी-1 सरकार के तीन कद्दावर मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे।
सुभासपा के सिंबल पर 6 और रालोद के सिंबल पर 8 विधायक जीतकर आए, हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए।
सुभासपा के नेता ओमप्रकाश राजभर ने राज्यसभा की एक सीट मांगी, पर सपा नेतृत्व ने उन्हें न तो कोई सीट दी और न ही मनाने की कोशिश करते हुए भविष्य के लिए कोई आश्वासन दिया। तभी से राजभर अलग रास्ता पकड़ने के संकेत देने लगे थे।