विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा है कि पति की गैरमौजूदगी में ससुर, बहू को ससुराल आकर रहने को बाध्य नहीं कर सकता है। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ बहू को मायकेवालों से मुक्त कराकर ससुराल में रहने देने के आग्रह वाली याचिका खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने यह फैसला मो. हासिम की याचिका पर दिया। हासिम का कहना था कि उसकी बहू को उसके माता-पिता 2021 से बिना किसी वजह के बंदी बनाए हुए हैं। बहू को ससुराल नहीं आने दे रहे। ऐसे में बहू को मुक्त कराकर ससुराल भेजा जाए। यह भी बताया कि उनका बेटा कुवैत में नौकरी करता है। वहीं, सरकारी वकील ने कहा कि विवाहिता के पति ने याचिका नहीं दाखिल की है। लिहाजा ससुर की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत शादी एक कांट्रैक्ट है। पत्नी की हिफाजत करना, प्रतिदिन की जरूरतें पूरी करना व शरण देने को पति बाध्य है। शादी के बाद पति कुवैत में कमा रहा है। पत्नी माता-पिता के साथ रह रही है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि विवाहिता अवैध हिरासत में है। यह भी संभव है कि पति की गैरमौजूदगी में पत्नी ससुराल न जाना चाहती हो। न्यायालय ने कहा कि अगर कोई व्यथा हो तो इसे पति समुचित फोरम के समक्ष उठा सकता है, न कि ससुर।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *