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सर्जरी टीम के साथ कॉर्डियोलॉजी के निदेशक प्रोफेसर राकेश कुमार वर्मा – फोटो : अमर उजाला
विस्तार
कासगंज के पठानपुर जिले के रहने वाले 58 साल के जमुना दास के हृदय का मुख्य पाइप फट गया था। एम्स दिल्ली, एसजीपीजीआई लखनऊ, सत्य साईं हार्ट इंस्टीट्यूट बंगलूरू में भी वह गए पर निराश लौटे। कॉर्डियोलॉजी में उनकी दुर्लभ किस्म की सर्जरी की गई और ऑपरेशन सफल रहा। यह प्रदेश की पहली सर्जरी है।
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इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर राकेश वर्मा की अगुवाई में विशेषज्ञों की टीम ने बिना चीरा लगाए दूरबीन विधि से फटे पाइप को बंद किया। पहली बार इसमें कवर्ड डबल स्टेंट का इस्तेमाल किया गया। हृदय के इस पाइप को डिसेंडिंग एओटा कहते हैं। इस पाइप से छाती, पेट, मांसपेशियों आदि को रक्त आपूर्ति होती है। मरीज को नौ दिसंबर को कार्डियोलॉजी में भर्ती किया गया।
सीने में तेज दर्द के लक्षण बताने पर उसकी जांच की गई तो डिसेंडिंग थोरेसिक एओटा क्रॉफोर्ड टाइप-1 नामक बीमारी की पुष्टि हुई। निदेशक वर्मा की अगुवाई में विशेषज्ञों की टीम ने रोगी को बिना बेहोश किए सर्जरी की गई। स्टेंट पेट की नसों को बंद न कर दे, इसके लिए माइक्रो कैथेटर को पैर की नस से पेट की नसों में पिरो दिया गया। इसके बाद कवर्ड स्टेंट डालने की बारी आई तो रोगी की पैर की नस का व्यास कम मिला। ऐसे में स्टेंट हाथ की नस से डालने का निर्णय लिया गया।
पाइप ज्यादा फटा होने के कारण लगाए दो कवर्ड स्टेंट
पाइप अधिक फटा होने से एक-एक करके दो कवर्ड स्टेंट लगाकर पाइप बंद किया गया। निदेशक प्रोफेसर वर्मा ने बताया कि ऑपरेशन सफल रहा। इस तरह का प्रदेश का यह पहला ऑपरेशन था। सर्जरी डेढ़ घंटे में कर दी गई। टीम में डॉ. नीरज प्रकाश, डॉ. नीरज त्रिपाठी, डॉ. कुमार सौरभ, डॉ. माधुरी प्रियदर्शी, डॉ. गौरव आदि रहे।
पाइप फटने से बाहर इकट्ठा होने लगता खून
हृदय का मुख्य पाइप जिसे एओटा कहते हैं, जब फट जाता है तो खून बाहर इकट्ठा होने लगता। इसका एकमात्र विकल्प ऑपरेशन होता है। रोगी की जान को बहुत खतरा होता है। यह बीमारी एओटा की दीवार कमजोर होने से होती है। ऑपरेशन में एओटा फूटने का भी खतरा रहता जिससे रोगी की तुरंत मृत्यु हो सकती है। पेट और गुर्दे की नसें बंद होने का भी खतरा रहता है। सही आंकलन और माप से कठिनाई दूर की गई। – प्रोफेसर राकेश कुमार वर्मा, निदेशक, एलपीएस कार्डियोलॉजी इंस्टीट्यूट