
यूपी उपचुनाव।
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प्रदेश में नौ सीटों पर हो रहा उपचुनाव भविष्य की सियासत के लिए अहम है। इसे वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिटमस टेस्ट के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस के मैदान से बाहर होने से अब यह सीधे सपा-भाजपा के दिग्गजों की प्रतिष्ठा से जुड़ गया है। यही वजह है कि सियासी हवा का रुख अपने पक्ष में मोड़ने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तक मैदान में डटे हैं। वे नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर सियासी तीर चला रहे हैं।
उपचुनाव वाली सीटों में गाज़ियाबाद, खैर और फूलपुर पर भाजपा काबिज थी जबकि मीरापुर सीट पहले सपा के साथ रही रालोद ने जीती थी। अब रालोद भी भाजपा के साथ है। इसी तरह मझवां सीट निषाद पार्टी के पास थी, पर इस बार यहां भाजपा ने पूर्व विधायक को मैदान में उतारा है। जिन नौ सीटों पर 20 नवंबर को मतदान है, उसमें ज्यादातर सीटों पर भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला है। कुछ सीटों पर बसपा मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है।
यह अलग बात है कि उपचुनाव के परिणाम से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन वर्ष 2027 के चुनाव को लेकर मतदाताओं का रुझान जरूर तय करेगा। यही वजह है कि भाजपा और सपा ने सीटों की स्थिति के आधार पर प्रभारी और सह प्रभारी तय किए हैं। संबंधित नेता अपने प्रभार वाली सीट पर न सिर्फ जनसभा कर रहे हैं, बल्कि गांव-गांव में पसीना बहा रहे हैं।
करहल से जुड़ी पूरे सैफई परिवार की साख
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह चुनाव इसलिए भी सियासी दिग्गजों की अग्निपरीक्षा है क्योंकि इस परिणाम का असर 2027 के टिकट बंटवारे पर भी पड़ेगा। स्थानीय दिग्गजों के साथ ही राज्य स्तरीय नेतृत्व क्षमता का दंभ भरने वालों का भी कद तय होगा। इसका मनोबल पर भी असर पड़ेगा। सीटों की स्थिति देखें तो करहल सीट पर सिर्फ अखिलेश यादव ही नहीं, पूरे सैफई परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। सियासी जानकारों का कहना है कि करहल में सपा का वोटबैंक घटता है और भाजपा बढ़त हासिल करती है तो इसका बड़ा संदेश पूरे देश में जाएगा। यही वजह है कि यहां कई मंत्रियों के साथ ही सीएम योगी भी जनसभा कर चुके हैं।