हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर आरोपियों का उप्र गैंगस्टर अधिनियम के तहत गैंगचार्ट बनाने पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने मामले में मुख्य सचिव को आदेश दिया कि प्रदेश सभी डीएम को गैंगस्टर एक्ट के तहत आरोपियों का गैंगचार्ट तैयार करने के दिशानिर्देशों की जानकारी दें। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अगर जरूरी हो तो गैंगस्टर एक्ट के तहत कारवाई करने वाले अफसरों का नया ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू कराएं। कोर्ट ने इस आदेश के साथ मामले में चुनौती दी गई गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज एफ आई आर समेत गैंगचार्ट को रद्द कर दिया।

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न्यायमूर्ति आलोक माथुर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने यह आदेश शब्बीर हसन व एक अन्य व्यक्ति की याचिका पर दिया। याचिका में याचियों के खिलाफ खीरी जिले के भीरा थाने में गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज कराई गई एफ आई आर समेत गैंगचार्ट को चुनौती देकर रद्द किए जाने का आग्रह किया था। याचियों के अधिवक्ता का कहना था कि खीरी की डीएम ने याचियों का गैंगचार्ट अप्रूव करते समय “खुद की संतुष्टि” दर्ज नहीं की। जबकि, गैंगस्टर अधिनियम के तहत गैंगचार्ट को मंजूर करते समय डी एम को “खुद की संतुष्टि” दर्ज करना आवश्यक था। ऐसे में प्रश्नगत गैंगचार्ट कानून की नजर में ठहरने लायक नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि गैंगचार्ट को मंजूरी देते समय डी एम ने सिर्फ यह लिखा कि ” पुलिस अधीक्षक और समिति से चर्चा की और प्रस्ताव मंजूर किया”। ऐसे में यह स्पष्ट है कि गैंग चार्ट को मंजूरी देने में दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया। जो, गैंगस्टर एक्ट के नियमों समेत सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों का उल्लंघन है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका में चुनौती दी गई एफ आई आर समेत गैंगचार्ट को रद्द कर दिया और याचिका मंजूर कर ली। हालांकि, कोर्ट ने मामले में संबंधित अफसर को मामले में गैंगस्टर एक्ट के तहत नए सिरे से कारवाई करने की छूट भी दी है। कोर्ट ने इस आदेश के अनुपालन के लिए इसकी कॉपी मुख्य सचिव को भेजने का भी निर्देश दिया है।



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