
चालीस साल बाद हुआ दूध का फैसला।
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दूध में फैट कम मिलने के करीब चार दशक पुराने तीन अलग-अलग मामलों में फैसले आए हैं। आरोपियों पर तीन-तीन हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। न्यायालय बंद होने तक उन्हें वहीं रुकने की सजा दी गई। ये फैसले अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम ने नवंबर माह में सुनाए हैं।
अल्लूनगर डिगुरिया निवासी मोती लाल फेरी लगाकर दूध बेचते थे। 42 साल पहले 24 अक्तूबर 1982 को एफएसडीए की टीम ने दूध का सैंपल लिया था। जांच में मिला था कि फैट मानक के अनुरूप नहीं है। तब वाद दायर किया गया था। दोषी मिलने पर आर्थिक दंड लगाया गया। 22 जून 1988 को वायरलेस चौराहे पर इंदिरानगर निवासी दूध विक्रेता राम लाल से भी सैंपल लिया था। इसमें 30 फीसदी फैट कम मिला था।
गोसाईंगंज के सेमराप्रीतपुर के केशव की डेयरी से भी दूध का सैंपल लिया गया था। इसमें फैट 22 फीसदी कम मिला। इन दोनों मामलों में भी वाद दायर किया गया था। इसका निर्णय नवंबर में हुआ था। इन दोनों पर भी खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 (पीएफए एक्ट 1954) के तहत दोषी पाते हुए तीन-तीन हजार का जुर्माना लगाया गया।
शक्कर में सुक्रोज कम मिलने के मामले में 21 साल बाद फैसला
बीकेटी के रहने वाले सुरेश चंद्र गुप्ता की दुकान से 8 सितंबर 2003 को एफएसडीए की टीम ने शक्कर का नमूना लिया था। जांच में शक्कर में सुक्रोज की मात्रा निर्धारित न्यूनतम सीमा से कम मिली थी। नमी भी पाई गई थी। मामले में सुरेश को दोषी पाया गया। उन पर छह हजार का जुर्माना लगाया गया। साथ ही न्यायालय के बंद होने तक उनको वहीं पर रुकने की सजा सुनाई गई।