
जमीन अधिग्रहण में हुए घोटाले।
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हाईवे के लिए जमीन अधिग्रहण में अफसर और कर्मचारी मिलीभगत से बड़ा खेल कर रहे हैं। दरअसल, जैसे ही अफसरों को किसी सड़क परियोजना की भनक लग रही है, वे किसी करीबी को कई गांवों में जमीन खरीदवा रहे हैं। इनमें कोई एनएचएआई के अफसर का रिश्तेदार है तो कोई कानूनी सलाहकार के परिवार का सदस्य है। यही नहीं, पीडब्ल्यूडी और राजस्व विभाग के कर्मी अनाप-शनाप रिपोर्ट भी लगा रहे हैं।
बरेली में बरेली-पीलीभीत-सितारगंज हाईवे और बरेली रिंग रोड के लिए जमीन अधिग्रहण में 80 करोड़ रुपये से ज्यादा का घपला सामने आने पर पीडब्ल्यूडी व एनएचएआई के कई अभियंता व कर्मचारी निलंबित किए जा चुके हैं। एनएचएआई सूत्रों के मुताबिक, अगर कड़ाई से जांच हो तो पलिया-शाहजहांपुर-हरदोई-लखनऊ हाईवे में भी ऐसी गड़बड़ियां मिलेंगी।
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मोटे मुआवजे के लिए घोटाला
कर्मवीर (बदला हुआ नाम) के पास पलिया-शाहजहांपुर-हरदोई-लखनऊ हाईवे, बरेली-पीलीभीत-सितारगंज और बरेली रिंग रोड के छह गांवों अमरिया, ककराही आउटर, नगरा, कुशमाह, नारायणपुर बिकरमपुर व उमरेशिया में जमीन थी। उसने एनएचएआई से मुआवजा भी लिया है। सूत्र बताते हैं कि उनका बेटा एनएचएआई के अधिवक्ना पैनल में है। उसे यह पता करना मुश्किल नहीं होता कि किस हाईवे को चौड़ा किया जाना है या कहां हाईवे बनना है।
स्टेट एसआईटी को सौंपी जांच
बरेली-सितारगंज-हाईवे पर कबीर दास (परिवर्तित नाम) ने नौ गांवों सरकरा, शाही, उगनपुर, अमरिया, भुआनी, सरदारनगर, कल्यानपुर, चक्रतीर्थ और माधोपुर में जमीन का मुआवजा लिया। प्रदेश सरकार ने मामले की जांच स्टेट एसआईटी को सौंप दी है।
कैसे पकड़े जाते हैं ऐसे भ्रष्टाचार
राजस्व रिकॉर्ड से ऐसा भ्रष्टाचार पकड़ना मुश्किल नहीं है। इसके लिए सिर्फ यह पता करना होगा कि मुआवजा लेने वाले व्यक्ति ने जमीन कब खरीदी। फिर उसके रिश्तेदारों और करीबियों को विभाग में ढूंढना होगा।