
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।
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प्रदेश में पोंजी स्कीम में पैसे के बदले किसी तरह का लाभ देने का वादा कर उसे पूरा न करने से जुड़े विवाद का मध्यस्थता के जरिये निपटारा करने का रास्ता साफ हो गया है। इसके लिए लाए गए प्रस्ताव को शुक्रवार की देर शाम कैबिनेट बाई सर्कुलेशन के माध्यम से मंजूरी दे दी गई है। दोनों पक्षों की सहमति से 25 लाख रुपये तक के विवाद की सुनवाई सक्षम प्राधिकारी के रूप में मंडलायुक्त कर सकेंगे। इससे अधिक धनराशि वाले मामलों का निपटारा अपर मुख्य सचिव, वित्त की अध्यक्षता में गठित राज्य स्तरीय पर्यवेक्षणीय समिति करेगी।
इससे फर्जी फर्मों और कंपनियों के जरिये लुभावने ऑफर देकर जनता को ठगने वाली योजनाओं पर शिकंजा कसा जा सकेगा। प्रदेश सरकार ने ‘अविनियमित निक्षेप स्कीम पाबंदी अधिनियम-2019”” पर अमल के लिए नियमावली बनाई थी, जिसका कैबिनेट ने अनुमोदन कर दिया। केंद्र सरकार ने पहले ही पोंजी स्कीम चलाकर लोगों से पैसा जमा कराने व उसके बदले दिए जाने वाले लाभ के वादे को पूरा न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान किया है। इसके दायरे में अनधिकृत तरीके से संचालित वित्तीय संस्थाएं, रियल एस्टेट व अन्य तरह के बिजनेस ऑफर आदि से जु़ड़े मामले आएंगे। अब राज्य सरकार ने केंद्र के कानून को पूरी तरह लागू कर दिया है।
प्रदेश सरकार ने इस कानून के तहत आने वाले मामलों की सुनवाई के लिए जिला स्तर पर एडीजे-प्रथम के न्यायालय को सक्षम न्यायालय घोषित किया है। नियमावली में प्रावधान है कि शिकायतकर्ता व आरोपी जिन मामलों को न्यायालय के बाहर समझौते से समाधान के लिए इच्छुक होंगे, वहां प्रकरण को आपसी सहमति से मंडलायुक्त को संदर्भित किया जा सकेगा। नियमावली को जल्दी ही कैबिनेट से मंजूरी दिलाने की योजना है।
झूठी शिकायत पर एफआईआर व जुर्माना
इस एक्ट का दुरुपयोग न हो, इसके लिए शिकायतकर्ता को भी नियमों के दायरे में बांधा गया है। यदि यह प्रमाणित हो जाए कि किसी व्यक्ति ने जानबूझकर या विद्वेष पूर्वक कोई शिकायत की तो उसके खिलाफ जिला, मंडल व राज्य स्तरीय समितियों के अध्यक्ष या सक्षम प्राधिकारी के निर्देश पर एफआईआर कराई जा सकेगी। इसी तरह यदि कोई दुर्भावनापूर्ण तथ्य सामने आते हैं तो एक लाख रुपये तक दंड लगा सकेगा।
अधिकतम 180 दिन में पूरी करनी होगी विवेचना
अविनियमित निक्षेप स्कीम पाबंदी अधिनियम-2019 के तहत दर्ज मामलों की विवेचना 90 दिन में पूरी करनी होगी। अपरिहार्य परिस्थितियों में विवेचना अवधि 90 दिन बढ़ाई जा सकेगी। लेकिन, किसी भी स्थिति में 180 दिन से अधिक का विस्तार नहीं दिया जा सकेगा। विवेचना अवधि यदि बढ़ाई जाएगी तो इसकी जानकारी डीएम व मंडलायुक्त को अनिवार्य रूप से देनी होगी।
एफआईआर दर्ज होने से पहले भी संपत्ति की कुर्की का अधिकार
नियमावली में स्पष्ट किया गया है कि जमा लेने वाले की संपत्ति की कुर्की अधिनियम के अधीन मामला दर्ज होने से पहले भी किया जा सकेगा। हालांकि, आरंभिक जांच में यह स्थापित होना जरूरी है कि वह संपत्ति, अपराध कर अर्जित की गई है या जमाकर्ता के हित में ऐसा करना जरूरी है।
राज्यस्तरीय एजेंसी व सीबीआई को भेजने की प्रक्रिया भी तय
किसी शिकायत के अंतर जनपदीय या अंतर राज्यीय होने पर प्रकरण को जिला पुलिस के स्थान पर प्रमुख सचिव गृह के माध्यम से राज्य की किसी अन्य जांच एजेंसी को संदर्भित किया जा सकेगा। इसी तरह प्रकरण यदि एक से अधिक राज्यों में है तो प्रकरण को सीबीआई जांच के लिए संदर्भित किया जा सकेगा। नियमावली में इसकी प्रक्रिया भी तय कर दी गई है। नियमावली में न्यायालय में मामलों की वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की भी व्यवस्था कर दी गई है। इससे विवाद का निपटारा तेजी से हो सकेगा।