
प्रतीकात्मक तस्वीर।
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300 एमबीबीएस छात्र पांच साल की पढ़ाई के बाद सड़क पर हैं। उनकी डिग्री को मान्यता नहीं मिल पाई है। ऐसे में वे न तो नीट पीजी दे सकते हैं और न ही किसी मरीज का इलाज कर सकते हैं। उनका भविष्य दांव पर है, लिहाजा कॉलेज से लेकर महानिदेशालय तक चक्कर काट रहे हैं।
राजकीय मेडिकल कॉलेज एंड सुपर स्पेशियलिटी आजमगढ़, शेख उलहिंद मौलाना महमूद हसन मेडिकल कॉलेज सहारनपुर व रानी दुर्गावती राजकीय मेडिकल कॉलेज बांदा में 2017 बैच में 100-100 छात्रों ने दाखिला लिया। चार साल पढ़ाई व एक साल इंटर्नशिप की, लेकिन डिग्री की बारी आई तो पता चला कि इन कॉलेजों को 2017 बैच के लिए राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग ने सशर्त मान्यता दी थी। शर्तें पूरी न करने से इन्हें नियमित मान्यता नहीं दी गई है। ऐसे में इनका उप्र. मेडिकल फैकल्टी में पंजीयन नहीं हो सकता है।
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ये छात्र अब खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि दाखिला लेने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि 5 साल कोर्स पूरा करते ही इनका कॅरियर बन जाएगा। कुछ छात्र परास्नातक में दाखिला लेना चाहते थे तो कुछ प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के तहत सरकारी अस्पताल में सेवा का सपना संजोए थे। पर अब ये छात्र निरंतर भागदौड़ कर रहे हैं। यह देख महानिदेशालय में नए सिरे से मान्यता संबंधी पत्रावलियों की पड़ताल शुरू की गई है।
2018 बैच पर भी संकट
इन कॉलेजों में 2018 बैच की भी इंटर्नशिप चल रही है। ये छात्र करीब छह माह बाद पास होकर निकलेंगे। इनके भी पंजीयन पर संकट है। यदि समय रहते इन पर फैसला नहीं हुआ तो 300 अन्य छात्रों को पंजीयन के लिए इंतजार करना पड़ेगा।