
बसपा सुप्रीमो मायावती।
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बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का मन पढ़ने के लिए बड़ा दांव खेला है। उन्होंने नगर निगम में महापौर पद के चुनावी मैदान में 17 में से 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। जबकि वर्ष 2017 के चुनाव में बसपा ने 16 सीटों पर मात्र दो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था।
शहरों में सरकार बनाने की रणनीति में मायावती की नजर लोकसभा 2024 के चुनाव पर है। दलितों को मायावती अपना काडर वोटर मानती हैं। ऐसे में बसपा की कोशिश है, किसी भी तरह से मुस्लिम बसपा के साथ आ जाएं। यही कारण है कि नगर निकाय चुनाव में 64 प्रतिशत से ज्यादा टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए हैं। पहले चरण के चुनाव के लिए बसपा ने दस में छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए। वहीं, दूसरे चरण में सात में से पांच मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। यह संख्या पिछले चुनाव से पांच गुना से भी ज्यादा है।
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पिछले नगर निगम चुनाव में केवल अलीगढ़ और बरेली में बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट दिया था। अलीगढ़ में जीत भी दर्ज की थी। दरअसल मायावती इस फॉर्मूले पर एक प्रयोग करना चाह रही हैं। विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने बड़ी ताकत के साथ सपा को वोट किया। इसके बावजूद सपा बहुमत से काफी दूर रही। उधर, बसपा की नैया भी चुनाव में डूब गई। बसपा से मात्र एक ही प्रत्याशी चुनाव जीत सका था। यहां तक कि बसपा का काडर वोटर भी खिसका। अब मायावती दोनों को एक साथ जोड़ने की मुहिम में हैं।
यह चाल कितनी सफल
पर, बड़ा सवाल यह है कि यह चाल कितनी सफल होती है। बसपा थिंक टैंक का मानना है कि यदि दलित और मुस्लिम साथ आ गए तो न केवल निकाय चुनाव, बल्कि लोकसभा चुनाव तक की राह आसान होगी। जब भी ये दोनों एक साथ आए हैं, बसपा को लाभ हुआ है।