UP: No uncle, no PDA, that's why Akhilesh bet on Mata Prasad, did not let anyone in the party get a clue

अखिलेश के बगल(दाएं तरफ) में खड़े माता प्रसाद पांडेय।
– फोटो : अमर उजाला

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समाजवादी पार्टी ने यूपी विधानसभा में माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर ब्राह्मण कार्ड चला। हालांकि, बताते हैं कि इस पद के दावेदार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव और पीडीए के कई विधायक भी थे। लेकिन, अखिलेश यादव को 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए लंबे राजनीतिक अनुभव वाले ब्राह्मण नेता पर दांव लगाना ज्यादा मुफीद लगा।

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विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद अखिलेश यादव के सांसद चुने जाने के कारण रिक्त हुआ था। राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन था कि पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) समाज का ही कोई नेता इस पद के लिए चुना जाएगा। विधायक रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज और तूफानी सरोज के नाम पर विचार भी हुआ, लेकिन बताते हैं कि सपा के ही कुछ प्रमुख नेताओं का मानना था कि सत्ता पक्ष से मोर्चा लेने के लिए ये नेता उतने आक्रामक साबित नहीं होंगे, जितना आगामी चुनावों को देखते हुए जरूरी है।

विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाकर सपा नेतृत्व ने पहले ही यह संदेश दे दिया था कि विधानसभा में शिवपाल यादव को मौका नहीं दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, सपा अध्यक्ष ने अपनी कोर टीम के सामने अपनी राय भी जाहिर कर दी कि ढाई साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए पेशेवर राजनीतिक सोच के साथ चुनावी समीकरणों को देखते हुए निर्णय लिया जाए।

ब्राह्मण समाज में अच्छा संदेश देने की कोशिश

यूपी में करीब 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। ब्राह्मणों को यह संदेश देने के लिए सपा पीडीए की बात करने के बावजूद उन्हें अहम पद देने में पीछे नहीं है। इसीलिए माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए चुना गया। यहां बता दें कि सपा के विधायक मनोज पांडेय, राकेश पांडेय और विनोद चतुर्वेदी ने भाजपा के पक्ष में पाला बदल लिया, जिससे ब्राह्मण समाज में यह संदेश गया कि सपा में उनकी अहमियत कम हो रही है। अब सपा इस कदम से ब्राह्मण समाज में अच्छा संदेश जाएगा। इसके जरिये सपा ने यह संदेश देने का प्रयास भी किया है कि उसे अगड़ों से कोई परहेज नहीं है। यहां बता दें कि नेता प्रतिपक्ष के पद पर कई नेता दावेदार थे, उनमें सबसे वरिष्ठ और मुलायम सिंह यादव के भरोसेमंद रहे माता प्रसाद को चुनकर अंदरूनी गुटबाजी को कम करने का प्रयास भी किया।



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