अस्थमा के मरीज आज से 5000 साल पहले भी थे। प्राचीन काल में इस बीमारी को तमक श्वास कहा जाता था। मूल चरक संहिता में में कहा गया था कि ये बीमारी वात और कफ दोष के असंतुलन से होती है। जिसे बिना किसी दुष्प्रभाव के प्राकृतिक तरीके से ठीक किया जा सकता है। इसका इलाज जंगलों में ही छुपा था। हर साल मई के पहले मंगलवार को मनाए जाने वाले आज विश्व अस्थमा दिवस पर आयुर्वेद की भूमिका पर लोगों का भरोसा है। 

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राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के कायचिकित्सा-पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ. अजय कुमार गुप्ता ने कहा कि भारत में आज भी 5 हजार साल पुरानी इलाज पद्धति काफी कारगर है। तब पूरे भारत में घने जंगल हुआ करते थे। हर जगह पर बड़ी मात्रा में आयुर्वेदिक औषधियों की भरमार थी। इसमें चूर्ण (पाउडर), चाशनी (सीरप), क्वाथ (काढ़ा) और रसों (गोलियों) है। साथ ही पंचकर्म में वमन और नस्य प्रक्रिया भी फायदा पहुंचाती है। 

उन्होंने कहा कि हमारे ऋषिमुनियों ने इन्हें खोजा और सूत्रों को एक जगह संकलित किया, फिर आने वाली पीढि़यों ने उन सूत्रों के अनुसार दवाओं के निर्माण को जारी रखा। इनमें से आज भी कई दवाएं इस्तेमाल हो रहीं हैं। वहीं ये रोग न हो इसके लिए उसी काल से प्राणायाम और योग, भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम और कपालभाति का अभ्यास किया जाता था।



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