
फिल्म अभिनेता व निर्देशक इश्त्यिाक खान, लेखक मनोज संतोषी।
– फोटो : रूपेश कुमार
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हंसाने को इबादत से भी ऊंचा माना गया है। इस पर शायर निदा फाजली ने लिखा है, घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए। फाजली के इस शेर को आगे बढ़ाने में अलीगढ़ के हरदुआगंज में जन्मे मनोज संतोषी दिल-ओ-जान से लगे हैं। उन्हें उदास चेहरे पर मुस्कान बिखेरना अच्छा लगता है। वह कहते हैं कि हंसना ही जिंदगी है, क्योंकि नवरस में हंसी भी शामिल है।
हास्य धारावाहिक भाबी जी घर पर हैं, मे आई कम इन मैडम, जीजा जी छत पर हैं, यस बॉस, हप्पू की उलटन पलटन के लेखक मनोज संतोषी ने अमर उजाला को बताया कि हंसना ही जिंदगी है। इंसान पैदा हुआ है, तो निश्चित ही उसके साथ हंसी भी पैदा हुई है। हंसी नवरस में भी शामिल है। पहले भी कॉमेडी फिल्मों का दौर रहा है। राजकपूर की फिल्मों में रोमांस और कॉमेडी होती थी। महमूद भी कॉमेडी करते थे। फिल्मों में कॉमेडी का ट्रैक होता था। नाटकों में इसका चलन रहा है। 1940 दौर के बाद सिनेमा की प्रगति हुई तो उसी हिसाब से कॉमेडी भी अपनी जगह चलती रही। आज कॉमेडी हावी है, क्योंकि जिंदगी में गम ज्यादा है। कॉमेडी देख-सुनकर लोग थोड़ी राहत महसूस करते हैं।
उन्होंने कहा कि टीवी स्क्रीन पर भाबी जी घर पर हैं, हप्पू की उलटन पलटन चल रहा है। दो कॉमेडी शो आने वाले हैं। वह जिस तरह से गुदगुदाते हैं, उसी तरह गुदगुदाते रहेंगे। लोग खुश रहे और दुआएं दें कि वाह.. क्या चीज बनाई है। दर्शकों का प्यार मिलता रहा है। अगर पड़ोसन फिल्म देखिए तो बिना अश्लीलता की कॉमेडी होती थी। उस दौर में भी लोग मजे लेते थे, लेकिन जैसे-जैस दौर बदल रहा है। अब कॉमेडी में अश्लीलता और द्विअर्थी संवाद शामिल हो गए हैं। इससे इन्कार भी नहीं कर सकते हैं कुछ फिल्मों और वेब सीरीज में कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता पेश की गई है, लेकिन अगर थोड़ा-बहुत द्विअर्थी लेकर दर्शकों को हंसाया जाए और परिवार के लोग एक साथ देख सकें तो उसमें बुरा भी नहीं है।