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यमुना नदी – फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश जल निगम को 38 नालों की सफाई के लिए कदम उठाने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई, जिसके परिणामस्वरूप अनुपचारित सीवेज सीधे यमुना में बह रहा है। अपने आदेश का पालन न करने से नाराज जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने निकाय के प्रबंध निदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेश होने और चूक के बारे में बताने का निर्देश दिया।
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पीठ ने कहा, हमें लगता है कि 25 नवंबर, 2024 के आदेश का कोई अनुपालन नहीं किया गया है। हम उत्तर प्रदेश जल निगम के प्रबंध निदेशक को अगली सुनवाई की तारीख से एक सप्ताह पहले व्यक्तिगत अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं। मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी। उत्तर प्रदेश जल निगम के वकील ने कहा कि 38 नालों और पांच आंशिक रूप से टैप किए गए नालों को टैप करने के लिए अंतरिम उपाय आगरा नगर निगम की ओर से किए जाने थे।
शीर्ष अदालत ने पहले जल निगम को नालों को टैप करने के लिए अंतरिम उपाय करने का निर्देश दिया था और सभी संबंधित अधिकारियों से कहा था कि वे काम करने के लिए जिनकी मंजूरी की आवश्यकता है, वे तुरंत मंजूरी जारी करें। नदी तल से गाद, कीचड़ और कचरा हटाने के मामले में न्यायालय ने आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट को रिकार्ड में लिया, जिसमें कहा गया था कि 5 से 6 मीटर तक गाद हटाना व्यवहार्य नहीं है।
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश और जल निगम को हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया था कि नदी तल पर कचरा न डाला जाए, इसके लिए उन्होंने क्या उपाय सुझाए हैं। वहीं बेंच ने नालों को टेप करने के लिए अनुपालन रिपोर्ट एक माह में मांगी थी। जलनिगम ने अपने हलफनामे में कहा कि 136 करोड़ रुपये की डीपीआर नमामि गंगे योजना में भेजी गई है। याचिकाकर्ता व अधिवक्ता केसी जैन ने बताया कि जब तक यमुना में नालों का जाना बंद नहीं होता, तब तक बैराज निर्माण संभव नहीं है। समयबद्ध और प्रभावी कार्यान्वयन हो तो यमुना को कचरा, गंदगी मुक्त किया जा सकता है।