अक्षय तृतीया का पर्व इस वर्ष Muzaffarnagar में कुछ अलग ही अंदाज़ में मनाया गया। पूरे शहर में भक्ति, श्रद्धा और समर्पण का अनूठा संगम देखने को मिला, जब जिनशासन प्रभावना संघ की पूरी कार्यकारिणी ने मिलकर गन्ने के रस का भव्य वितरण कर, भगवान आदिनाथ के जयकारों से शहर को गुंजायमान कर दिया।
यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पक्ष भी अत्यंत गहरा है। हिन्दू और जैन समाज में इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है, और इसे शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए सर्वोत्तम दिन माना जाता है। वहीं जैन समुदाय के लिए यह दिन भगवान ऋषभदेव की वर्षभर की तपस्या के पारण का पावन क्षण होता है, जब उन्होंने हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस द्वारा अर्पित गन्ने के रस से पारणा किया था।
🔱 अक्षय तृतीया: केवल पर्व नहीं, श्रद्धा और तप का प्रतीक
अक्षय तृतीया को जैन धर्म में इक्षु तृतीया कहा जाता है। इसका सीधा संबंध भगवान ऋषभदेव से है, जिन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपनी एक वर्ष की निर्जल तपस्या को गन्ने के रस से पारणा कर समाप्त किया था। यही कारण है कि जैन अनुयायी इस दिन गन्ने के रस का वितरण कर भगवान आदिनाथ की स्मृति में इस पर्व को मनाते हैं।
मुज़फ्फरनगर में इस अवसर पर जिनशासन प्रभावना संघ द्वारा विशेष आयोजन किया गया, जिसमें समाज के विभिन्न प्रमुख लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण रहे – गन्ने के रस का मुफ्त वितरण, आदिनाथ भगवान के जयकारों की गूंज, और सामूहिक सहभागिता।
🙏 धर्म और समर्पण का संगम: प्रमुख लोगों की भागीदारी
इस आयोजन में शहर के कई प्रमुख जैन समाज के सदस्य विशेष रूप से उपस्थित रहे, जिनमें शामिल थे:
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ध्रुव जैन (सी.ए.)
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ऋषभ जैन
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आयुष जैन
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पीयूष जैन (तिगाई वाले)
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अंकित जैन (बस वाले)
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दीपक जैन (सराय वाले)
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शैंकी जैन (अम्बर वाले)
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अक्षत जैन (SPB वाले)
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अक्षत जैन (टिकरी वाले)
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अर्पित जैन (टिकरी वाले)
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राहुल जैन
सभी ने मिलकर भगवान आदिनाथ के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित की और समाज सेवा के इस पुनीत कार्य में अपनी भूमिका निभाई।
🍹 इक्षु रस वितरण: भक्ति और स्वास्थ्य दोनों का संगम
गर्मियों की तपती धूप में जहां एक ओर लोग ठंडे पेय की तलाश में रहते हैं, वहीं इस पर्व पर गन्ने का रस न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक बना, बल्कि यह शरीर को ठंडक देने वाला और ऊर्जा से भरपूर पेय भी साबित हुआ। पूरे शहर में विभिन्न स्थानों पर लगाए गए गन्ने के रस वितरण केंद्रों पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ी। श्रद्धालु एक ओर भगवान की आराधना में लीन दिखे, तो दूसरी ओर समाज सेवा की यह मिसाल देखकर अभिभूत भी हुए।
🌼 जैन परंपरा और उसका सामाजिक योगदान
जैन धर्म की यह परंपरा दर्शाती है कि कैसे आध्यात्मिकता के साथ समाज सेवा को जोड़ा जा सकता है। इक्षु तृतीया केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, यह एक संदेश है – त्याग, तप और सेवा का। जैन धर्म में यह पर्व आत्मशुद्धि, अनुशासन और संयम का प्रतीक है, और यही बात इस आयोजन से झलकी भी।
मुज़फ्फरनगर जैसे शहर में इस प्रकार के आयोजन से सामाजिक समरसता, एकता और धार्मिक चेतना को भी बल मिलता है। यह आयोजन न केवल जैन समाज के लिए, बल्कि पूरे शहरवासियों के लिए एक सकारात्मक प्रेरणा बनकर सामने आया।
📸 धार्मिक कार्यक्रमों की झलकियां और मीडिया कवरेज
अक्षय तृतीया के इस आयोजन में सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित हुए। कई बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों ने भी कार्यक्रम में उत्साहपूर्वक भाग लिया। इक्षु रस वितरण के साथ-साथ भगवान आदिनाथ की आरती, सामूहिक भजन, तथा जैन धर्म की शिक्षाओं का वाचन भी किया गया।
स्थानीय मीडिया और पत्रकारों ने भी इस आयोजन को प्रमुखता से कवर किया। शहर के विभिन्न कोनों में बैनर, पोस्टर और धार्मिक झांकियों के माध्यम से इस पर्व की भव्यता को दर्शाया गया।
📿 आस्था की मिसाल बना मुज़फ्फरनगर का आयोजन
जहां एक ओर देशभर में अक्षय तृतीया के अवसर पर सोना खरीदने, पूजन, और नए कार्यों की शुरुआत होती है, वहीं मुज़फ्फरनगर में यह पर्व एक विशेष रूप में सामने आया। यहां केवल धर्म नहीं, समाज सेवा का संदेश प्रमुखता से उभरा। गन्ने का रस वितरण महज एक रस्म नहीं रही, बल्कि यह समर्पण, श्रद्धा और सहभागिता की मिसाल बनी।
📌 पहले बात भविष्य की
इस आयोजन की सफलता को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले वर्षों में यह पर्व और भी बड़े स्तर पर मनाया जाएगा। यह सिर्फ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो समाज के लिए कुछ करना चाहता है।
अक्षय तृतीया हमें यह सिखाता है कि ‘अक्षय’ केवल धन और समृद्धि तक सीमित नहीं, बल्कि अच्छे कर्म, सेवा, और परोपकार भी उतने ही अक्षय हैं।